‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

आॅंख खोल कर देख लो

रोजगार की चाह में, बने हुये परतंत्र ।
अंग्रेजी के दास हो, चला रहे हैं तंत्र ।।

अपनी भाषा भूल कर, क्या समझोगे मर्म ।
अंग्रेजी में बात कर, करे कहां कुछ शर्म ।।

है भाषा यह विश्व की, मान गये हम बात ।
पर अपनो के मध्य में, बनते क्यों बेजात ।।

आॅंख खोल कर देख लो, चीन देश का काम ।
अपनी बोली में बढ़े, किये जगत में नाम ।।

हिन्दी भाषी भी यहां, देवनागरी छोड़ ।
रोमन में हिन्दी लिखें, अपना माथा फोड़ ।।

आजादी के नाम पर, लोग हुये कुर्बान ।
जिनकी हम संतान हैं, छोडे़ कहां जुबान

रोमन लिखते आप क्यों

रोमन लिखते आप क्यों, देवनागरी छोड़
अपनी भाषा और लिपि, जगा रही झकझोर ।।
जगा रही झकझोर, याद पुरखो का कर लो ।
जिसने खोई जान, सीख उनकी तुम धर लो ।।
रहना नही गुलाम, रहो चाहे तुम जोगन ।
हुये आजाद आप, लिखे क्यो अबतक रोमन ।।

चिंतन के दोहे

आतंकी करतूत से, सहमा है संसार ।
मिल कर करे मुकाबला, कट्टरता को मार ।।

कट्टरता क्यों धर्म में, सोचो ठेकेदार ।
मर्म धर्म का यही है, मानव बने उदार ।।

खुदा बने खुद आदमी, खुदा रहे बन बूत ।
करें खुदा के नाम पर, वह ओछी करतूत ।।

छिड़ा व्यर्थ का वाद है, कौन धर्म है श्रेष्ठ ।
सार एक सब धर्म का, सार ग्र्रहे सो ज्येष्ठ ।।

विश्व सिकल सेल दिवस पर कुण्डलिया

बड़ दुखदायी रोग है, नाम है सिकल सेल ।
खून करे हॅसिया बरन, दर्द का करे खेल ।।
दर्द का करे खेल, जोड़ में  फॅसकर हॅसिया  ।
नहीं इसका इलाज, दर्द झेले दिन रतिया।।
फोलिक एसिड़ संग, खूब पानी फलदायी ।
शादी में रख ध्यान, रोग है बड़ दुखदायी ।।

योग दिवस पर दोहे

योग दिवस के राह से, खुला विश्व का द्वार ।
भारत गुरू था विश्व का, अब पुनः ले सम्हार ।।

 गौरव की यह बात है, गर्व करे हर कोय ।
 अपने ही इस देश में, विरोध काहे होय ।।

 अटल रहे निज धर्म में, दूजे का कर मान ।
 जीवन शैली योग है, कर लें सब सम्मान ।।

जिसकी जैसी चाह हो, करले अपना काम ।
पर हो कौमी एकता, रखें जरूर सब ध्यान ।।

भ्रष्टाचार पर दोहे

मानवता हो पंगु जब, करे कौन आचार ।
नैतिकता हो सुप्त जब, जागे भ्रष्टाचार ।।

प्रथा कमीशन घूस हैे, छूट करे सरकार ।
नैतिकता के पाठ का, है ज्यादा दरकार ।।

जनता नेता भ्रष्ट है, भ्रष्ट लगे सब तंत्र ।
नेत्रहीन कानून है, दिखे कहां षडयंत्र ।।

अपने समाज देश का, करो व्याधि पहचान ।
जनक व्याधि के आप ही, आपहि वैद्य महान ।।

रिश्वत देना रोग है, रिश्वत लेना रोग ।
जीना दुष्कर जो करे, बनकर पामर योग ।।

चूसे भ्रष्टाचार अब, खटमल जैसे खून ।
देश राज्य बेहाल है, छोड़ो आप जुनून ।।

हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला काहे होय ।।

घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, देते रहते रोग ।।

-रमेश चौहान



चरण पखारे शिष्य के (कुण्डलिया)

चरण पखारे शिष्य के, शाला में गुरू आज ।
शिष्य बने भगवान जब, गुरूजन के क्या काज ।।
गुरूजन के क्या काज, स्कूल में भोजन पकते ।
पढ़ना-लिखना छोड़, शिष्य तो दावत छकते ।।
कागज का सब खेल, देख लो मन को मारे ।
हुये शिष्य सब पास, चलो अब चरण पखारे ।।

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