‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

चरण पखारे शिष्य के (कुण्डलिया)

चरण पखारे शिष्य के, शाला में गुरू आज । शिष्य बने भगवान जब, गुरूजन के क्या काज ।। गुरूजन के क्या काज, स्कूल में भोजन पकते । पढ़ना-लिखना छोड़, शिष्य तो दावत छकते ।। कागज का सब खेल, देख लो मन को मारे । हुये शिष्य सब पास, चलो अब चरण पखारे ।। ...

घोर-घोर रानी (चौपाई छंद)

काली-काली बरखा आई । हरी-हरी हरियाली लाई रिमझिम-रिमझिम  बरसे पानी । नम पुरवाही चले सुहानी बितत बिते पतझड़ दुखदायी । पुष्‍प-पत्र पल्लव हर्षाई वन उपवन अब लगे मुस्काने । खग-मृग मानव गाये गाने इंद्रधनुश नभ पर बन आये । देख-देख बच्चे हर्षाये रंग बै जा नी ह पी ना ला । बच्चे पढ़े थे पाठशाला तडि़त जब लाल आॅंख दिखाये । बादल भी नगाड़ा बजाये रण-भेरी को...

कुछ दोहे

उनको थोड़ा दर्द हो, होती मुझको पीर । यूं ही मेरी अंखिया, छलका देती नीर ।। मेरा मेरा सब कहे, किसका है संसार । छोड़ इसे पर लोग क्यों, जाये बेड़ापार ।। करना धरना कुछ नहीं, केवल करते शोर । भज ले रे मन राम तू, कहते खुद को छोड़ ।। रूप रंग जिसके नही, ना ही जिसके मोल । खास आम सब मांगते, पानी पानी बोल ।। पानी से ही प्राण है, पानी से ही सृष्टि । पंचतत्व...

दस दोहे

1. चूड़ी मुझसे पूछती, जाऊं किसके हाथ । छोड़ सुहागन जा रही, अब तो मेरा साथ । 2. रखे अपेक्षा पुत्र से, निश्चित इक बाप । नेक राह पर पुत्र हो, देवे ना संताप ।। 3. सच का पथ जग में कठिन, चले कौन उस राह । सच्चा झूठा कौन है, करे कौन परवाह ।। 4. खड़े हुये हैं रेल में, लिये बेटवा बांह । झूला जैसे झूलते, बेटा करते वाह ।। 5. बांटे से कम होत है, हृदय घनेरी...

कान्हा तेरी बासुरी (दोहे)

कान्हा मुख पर बासुरी, बोल रही सब राग । चेतन की क्या बात है, जड़ में है अनुराग ।। कान्हा तेरी बासुरी, जादू क्यों फैलाय । सुध-बुध अब खुद की नही, नही मुझेे कुछ भाय ।। कदम डाल तो झूमते, यमुना जल बलखाय । नाच रही है धूल कण, कान्हा पद परघाय ।। पुष्प डाल तब नाचती,...

दिखें ना बिखरे-बिखरे (कुण्डलि)

बिखरे-बिखरे पुष्प चुन, बुनिये सुंदर हार । तिनका-तिनका बांध कर, गढि़ये इक उपहार ।। गढि़ये इक उपहार, समेटे जो संदेशा । करें इसे स्वीकार, छोड़ कर सब अंदेशा । हम दोनों है पुष्प, प्यार धागा जो निखरे । रहें सदा हम साथ, दिखें ना बिखरे-बिखरे ।। ...

भूकंप की मार से

वहां घोर भूकंप की मार से ।। बहे आदमी अश्रु की धार से । घरौंदे जहां तो गये हैं बिखर । जहां पर बचे ही न ऊॅंचे शिखर ।। सड़क पर बिलख रोय मासूम दो। घरौंदा व माॅ-बाप को खोय जो ।। दिखे आसरा ना कहीं पर अभी । परस्पर समेटे भुजा पर तभी ।। डरी और सहमी बहुत है बहन । हुये स्तब्ध भाई करे दुख सहन ।। नही धीर को धीरता शेष है । नहीं क्लेष को होे रहे क्लेष है ।। रूठे...

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