लाभ हानि के प्रश्न तज, माने गुरु की बात ।
गुरु गुरुता गंभीर है, उलझन झंझावात ।।
सीख सनातन धर्म का, मातु पिता भगवान ।
जग की चिंता छोड़ तू, कर उनका सम्मान ।।
पढ़े लिखे हो घोर तुम, जो अक्रांता सुझाय ।
निज माटी के सीख को, तुम तो दिये भुलाय ।।
अपनी सारी रीतियां, कुरीति होती आज ।
परम्परा की बात से, तुमको आती लाज ।।
इतने ज्ञानी भये तुम, पूर्वज लागे मूर्ख ।
बनके जेंटल मेन अब, कहते सबको धूर्त ।।
माना तेरे ज्ञान से, सरल हुये सब काम ।
पर समाज परिवार तो, रहा नहीं अब धाम ।।
गुरु गुरुता समझे नहीं, पाल रहे गुरुवाद ।
ध्येय धर्म को धरे नहीं, गढ़े पंथ नवजात ।।
ध्येय धर्म को धरे नहीं, गढ़े पंथ नवजात ।।