‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

जरा मुस्कुराकर

नेताजी से एक बार, पूछ लिया एक पत्रकार । हे महानुभाव तुम्हारे जीतने के क्या हैं राज ? जनता जर्नादन है मैं उनका पुजारी नेताजी कहे सीर झुका कर । जलाभिशेक करता कई बोतल लाल पानी चढ़ाकर । भांति भांति के भेट मैं अपने देव चढ़ाता अपनी मनोकामना उनसे कह कह कर । हरे हरे फूल पत्र दानपेटी डालता उनके डेहरी पर अपना सीर झुका कर। पत्रकार से नेताजी कहे जरा मुस्कुराकर...

गजल- यारब जुदा ये तुझ से जमाना तो है नही

यारब जुदा ये तुझसे जमाना तो है नही क्यों फिर भी कहते तेरा ठिकाना तो है नही कण कण वजूद है तो तुम्हारा सभी कहे माने भी ऐसा कोई सयाना तो है नही सुख में भुला पुकारे तुझे दुख मे आदमी नायाब  उनका कोई बहाना तो है नही भटके रहे जो माया के पीछे यहीं कहीं कोई भला खुदा का दिवाना तो है नही लगता मुझे तो खुद का इबादत ही    ढोंग सा अपना भी...

मतपेटी तो बोलेगी , आज मेरे देश में

झूठ और फरेब से, सजाये दुकानदारी । व्यपारी बने हैं नेता,  आज मेरे देश में ।। वादों के वो डाले दाने, जाल कैसे बिछायें है । शिकारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। जात पात धरम के, दांव सभी लगायें हैं । जुवारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। तल्ख जुबान उनके, काट रही समाज को । कटारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। दामन वो फैलाकर, घर घर तो घूम रहे...

कहमुकरिया

1.निकट नही पर दूर कहां है ? उनके नयन सारा जहां है । पलक झपकते करते कमाल क्या सखि साजन ? न अंतरजाल ।। 2.मित्र न कोई उनसे बढ़कर  । प्रेम भाव रखे हृदय तल पर ।। सीधे दिल पर देते दस्तक । क्या सखि साजन ? ना सखि पुस्तक ।। 3.हाथ धर उसे अधर लगाती । हलक उतारी प्यास बुझाती  ।। मिलन सार की अमर कहानी । क्या सखि साजन ? ना सखि पानी ।। 4.रोम रोम वो रमते...

मदिरापान

मदिरापान कैसा है, इस देश समाज में । अमरबेल सा मानो, फैला जो हर साख में ।। पीने के सौ बहाने हैं, खुशी व गम साथ में । जड़ है नाश का दारू, रखे है तथ्य ताक में ।। कुत्ता वह गली का हो, किसी को देख भौकता । उनके पास होते जो, उन्ही को देख नोचता ।। इंसान था भला कैसे, पागल वह हो गया । लाभ हानि तजे कैसे, दारू में वह खो गया ।। किया जो पान दैत्यों सा, मृत्यु...

शिखरिणी छंद

जिसे भाता ना हो, छल कपट देखो जगत में । वही धोखा देते, खुद फिर रहे हैं फकत में ।। कभी तो आयेगा, तल पर परिंदा गगन से । उड़े चाहे ऊॅचे, मन भर वही तो मगन से ...

गीतिका छंद

प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है । प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।। वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है । जीव में जीवन भरे यह, प्रेम ही तो प्राण है ।। पुत्र करते प्रेम मां से, औ पिता पु़त्री सदा । नींव नातो का यही फिर, प्रेम क्यो अनुदान है ।। बालपन से है मिले जो, प्रेम तो लाचार है । है युवा की क्रांति देखो, प्रेम आलीशान है ।। गोद...

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