‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

गणेश स्तुति

गणेश वंदना दोहा - जो गणपति पूजन करे,  ले श्रद्धा विश्वास । सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।।     चौपाई हे गौरा  गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला । । सबसे पहले तेरा सुमरन  । करते हैं हम वंदन पूजन ।।1।। हे प्रभु प्रतिभा  विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा अगम बताये ।।2।। पिता...

शिक्षक दिवस दोहावली

गुरू गुरूता गंभीर है, गुरू सा कौन महान । सद्गुरू के हर बात को, माने मंत्र समान । लगते अब गुरूपूर्णिमा, बिते दिनों की बात । मना रहे शिक्षक दिवस, फैशन किये जमात । शिक्षक से जब राष्ट्रपति, बन बैठे इस देश । तब से यह शिक्षक दिवस,  मना रहा है देश । कैसे यह शिक्षक दिवस, यह नेताओं का खेल । किस शिक्षक के नाम पर, शिक्षक दिवस सुमेल ।। शिक्षक अब ना गुरू...

जय हो जय हो भारत माता (छंदबद्व रचना)

दोहा ‘ भारत माता है भली, भली स्वर्ग से जान । नमन करते शिश झुका, देव मनुज भगवान् ।। चैपाई - लहर लहर झंडा लहराता । सूरज पहले शीश झुकाता । जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव जग विख्याता ।। उत्तर मुकुट हिमालय साजे । उच्च शिखर रक्षक बन छाजे ।। गंगा यमुना निकली पावन । चार-धाम हैं पाप नशावन ।। दक्षिण सागर चरण पखारे ।  गर्जन करते बन रखवारे सेतुबंध...

कर दो अर्पण

शहिदों का बलिदान पुकारता क्यों रो रही है भारत माता । उठो वीर जवान बेटो, भारत माता का क्लेश मेटो । क्यों सो रहे हो पैर पसारे जब छलनी सीने है हमारे । तब कफन बांध आये हम समर, आज तुम भी अब कस लो कमर । तब दुश्मन थे अंग्रेज अकेले आज दुश्मनों के लगे है मेले । सीमा के अंदर भी सीमा के बाहर भी, देष की अखण्ड़ता तोड़ना चाहते है सभी । कोई नक्सली बन नाक में...

वजूद

वजूद, आपका वजूद मेरे लिये है, एक विश्वास । एक एहसास ..... खुशियों भरी । वजूद, आपका वजूद मेरे साथ रहता, हर सुख में हर दुख में बन छाया घनेरी । वजूद, आपका वजूद मेरा प्यार .. ..............‘‘रमेश‘‘...............

वर्षागीत

श्यामल घटा घनेरी छाई, शीतल शीतल नीर है लाई । धरती प्यासी मन अलसाई, तपते जग की अगन बुझाई ।। खग-मृग पावन गुंजन करते, नभगामी नभ में ही रमते । हरितमा धरती के आंचल भरते, रंभाते कामधेनु चलते मचलते ।। कृषक हल की फाल को भरते, धान बीज को छटकते बुनते । खाद बिखेरते हसते हसते, धानी चुनरिया रंगते रंगते ।। सूखी नदी की गोद भरने लगी है, कल कल ध्वनि बिखेरने लगी...

त्रिवेणी

1.आंखों से झर झर झरते है झरने, मन चाहता है मर मर कर मरने जब आता है उनका ख्याल मन में 2.    सावन की रिमझिम फुहारे व झुले चल सखी मिल कर साथ झूले बचपन के बिझुड़े आज फिर मिले 3.    तू चल रफ्ता रफ्ता मै दोड़ नही सकता मन करता है ठहर जाने को टूट गया हू मै महंगाई जो सुरसा बन गई है रे जीवन 4.    मन है उदास...

Blog Archive

Popular Posts

Categories