‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

कान्हा तेरी बासुरी (दोहे)

कान्हा मुख पर बासुरी, बोल रही सब राग । चेतन की क्या बात है, जड़ में है अनुराग ।। कान्हा तेरी बासुरी, जादू क्यों फैलाय । सुध-बुध अब खुद की नही, नही मुझेे कुछ भाय ।। कदम डाल तो झूमते, यमुना जल बलखाय । नाच रही है धूल कण, कान्हा पद परघाय ।। पुष्प डाल तब नाचती,...

दिखें ना बिखरे-बिखरे (कुण्डलि)

बिखरे-बिखरे पुष्प चुन, बुनिये सुंदर हार । तिनका-तिनका बांध कर, गढि़ये इक उपहार ।। गढि़ये इक उपहार, समेटे जो संदेशा । करें इसे स्वीकार, छोड़ कर सब अंदेशा । हम दोनों है पुष्प, प्यार धागा जो निखरे । रहें सदा हम साथ, दिखें ना बिखरे-बिखरे ।। ...

भूकंप की मार से

वहां घोर भूकंप की मार से ।। बहे आदमी अश्रु की धार से । घरौंदे जहां तो गये हैं बिखर । जहां पर बचे ही न ऊॅंचे शिखर ।। सड़क पर बिलख रोय मासूम दो। घरौंदा व माॅ-बाप को खोय जो ।। दिखे आसरा ना कहीं पर अभी । परस्पर समेटे भुजा पर तभी ।। डरी और सहमी बहुत है बहन । हुये स्तब्ध भाई करे दुख सहन ।। नही धीर को धीरता शेष है । नहीं क्लेष को होे रहे क्लेष है ।। रूठे...

चार मुक्तक

1.बड़े बड़े महल अटारी और मोटर गाड़ी उसके पास यहां वहां दुकान दारी  और खेती बाड़ी उसके पास । बिछा सके कही बिछौना इतना पैसा गिनते अपने हाथ, नही कही सुकुन हथेली, चिंता कुल्हाड़ी उसके पास ।। 2.तुझे जाना कहां है जानता भी है । चरण रख तू डगर को मापता भी है ।। वहां बैठे हुये क्यों बुन रहे सपने, निकल कर ख्वाब से तू जागता भी है । 3.कोई सुने ना सुने राग...

अपेक्षा (शक्ति छंद)

अपेक्षा नही है किसी से मुझे । खुदा भी नही मुफ्त देते तुझे ।। भजन जो करेगा सुनेगा खुदा । चखे कर्म फल हो न हो नाखुदा ।। पड़े लोभ में लोेग सारे यहां । मदद खुद किसी की करे ना जहां ।। अपेक्षा रखे दूसरों से वही । भरोसा उसे क्या कुुवत पर नही ।। मदद जोे करे दूसरो का कहीं । अभी भी बची आदमीयत वहीं । कभी सांच को आंच आवे नही । कुहासा सुरूज को...

सच को आय न आंच (कुण्ड‍लियां)

दुनिया के बाजार में, झूठ लगे अनमोल । चमक दमक को देख कर, जन जन लेते मोल ।। जन जन लेते मोल, परख ना जाने सोना । पारखी करे मोल, सत्य है सच का होना ।। कह ‘रमेश्‍ा‘ कविराय, सत्य है इक निरगुनिया । सच को आय न आंच, तपा कर परखे दुनिया ।। साॅचा साॅचा होय है, नही साॅच को आॅच। आंख खोल कर देख लो, जगत बचें हैं साॅच ।। जगत बचें हैं साॅच, पार कर हर बाधा को । नही...

मन का दर्पण आॅंख है (दोहे)

आंख बहुत वाचाल है, बोले नाना भाव । सुख-दुख गुस्सा प्रेम को, रखती अपने ठांव ।। नयनों में वात्सल्य है, देख नयन न अघाय । इक दूजे को देख कर, नयनन नयन समाय ।। उलझन आंखों में लिये, करती कैसे बात । मुख रहती खामोश पर, नयन देत सौगात ।। आंख तरेरे आंख जब, नयन नीर छलकाय । प्रेम अश्रु जल धार में, नयनन ही बह जाय ।। मन का दर्पण आॅंख है, देती बिम्ब उकेर। झूठ...

पंच दोहे

धोते तन की गंदगी, मन को क्यों ना धोय । धोये नर मन को अगर, मानवता क्यो रोय ।। देह प्राण के मेल का, अजब गजब संयोग । इक इक पर अंतर्निहित, सह ना सके वियोग ।। सोचे कागा बैठ कर, एक पेड़ के डाल । पेड़ चखे हैं खुद कहां , कैसे लगे रसाल ।। पूछ रहे हो क्यों भला, हुई कौन-सी बात । देख सको तो देख लो, नयन छुपी सौगात ।। सूख गया पोखर कुॅंआ, बचा नदी में रेत । बोल...

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