1.
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।
2.
एक प्रश्न मैं पूछती, देना मुझे जवाब ।
छोरा छोरी क्यो भला, करते प्रेम जनाब ।।
3.
तेरा सच्चा प्यार है, मेरा है बेकार ।
माॅ की ममता क्यों भला, होती है लाचार ।।
4.
सोलह हजार आठ में, मिले न राधा नाम ।
सारा जग फिर क्यो भला, जपते राधे श्याम ।।
5.
मातु...
मेरे मुन्ना राजकुवर (कुकुभ छंद)

नीले नभ से उदित हुये तुम, आभा सूरज सा छाये ।
ओठो पर मुस्कान समेटे, सुधा कलश तुम छलकाये ।।
निर्मल निश्चल निर्विकार तुम, परम शांति को बगराओ ।
बाहों में तुम खुशियां भरकर, मेरी बाहो में आओ।।
ओ मेरे मुन्ना राजकुवर, प्राणो सा तू प्यारा है ।
आजा बेटा राजा आजा, मैंने बांह पसारा...
चिंतन (दोहे)
मानव मानव एक हैं, कहे धर्म हरएक।
भिन्न-भिन्न पथ है सही, पर मंजिल है एक ।
कर्म कर्म सतकर्म कर, कर्म रचे व्यवहार ।
पैसों से व्यवहार तो, मिले नही संसार ।।
बढ़े चलो निज राह पर, हिम्मत भरकर बाॅंह ।
तेज धूप को देख कर, ढूंढ़ों मत जी छाॅह ।।
यहां वहां देखें जहां, इक जैसे है लोग ।
स्वार्थ लोभ अरू मोह का, लगा सभी को रोग ।
आप और मैं एक है, ना चाकर ना कंत...
इंशा (तांका)
1.
तूझे भुला मैं
मुझको भी भुले तू
ना तेरा दोष
दोष मेरा भी नही
इंशा ही तो हैं ।
2.
अकेला आया
दुनिया में अकेला हॅू
जग तो राही
जाना मुझे अकेला
दुनिया छोड़
3.
भेड़ सा इंसा
एक राह चलते
स्वार्थ के पथ
सोच विचार तज
देखा देखी में
4.
शान दिखाना
मेरी फितरत है
इंसान हूॅं मैं
दुनिया से सीखा है
आंख दिखाना
...
करो प्रीत अपनो से बंदे
‘रमेश‘ दोनों हाथ जोड़ कर, श्री गणपति प्रथम मनावे ।
ज्ञानी जन को वंदन करके, रम्य छंद कुकुभ सुनावे ।।
सोलह चैदह पर यति जिसमें, छंद कुकुभ है कहलाते ।
विषम चरण बाध्य नही विशेष, पदांत गुरू-गुरू ही आते ।।
कुलशित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, बरबस ही नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से हाथ मिलाये ।
भौतिकता...
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