पेड़ पीपल का खड़ा है, एक मेरे गांव में ।
शांति पाते लोग सारे , बैठ जिसके छांव में ।।
शाख उन्नत माथ जिसका, पर्ण चंचल शान है ।
हर्ष दुख में साथ रहते, गांव का अभिमान है ।।
पर्ण जिसके गीत गाते, नाचती है डालियां ।
कोपले धानीय जिसके, है बजाती तालियां ।।
मंद शीतल वायु देते, दे रहे औषध कई ।
पूज्य दादा सम हमारे, सीख देते जो नई।
नीर डाले मूल उनके, भक्त आस्थावान जो ।
कामना वह पूर्ण करते, चक्रधारी बिष्णु हो ।।
सर्वव्यापी सा उगे जो, हो जहां मिट्टी नमी ।।
कृष्ण गीता में कहें हैं, पेड़ में पीपल हमी ।
शांति पाते लोग सारे , बैठ जिसके छांव में ।।
शाख उन्नत माथ जिसका, पर्ण चंचल शान है ।
हर्ष दुख में साथ रहते, गांव का अभिमान है ।।
पर्ण जिसके गीत गाते, नाचती है डालियां ।
कोपले धानीय जिसके, है बजाती तालियां ।।
मंद शीतल वायु देते, दे रहे औषध कई ।
पूज्य दादा सम हमारे, सीख देते जो नई।
नीर डाले मूल उनके, भक्त आस्थावान जो ।
कामना वह पूर्ण करते, चक्रधारी बिष्णु हो ।।
सर्वव्यापी सा उगे जो, हो जहां मिट्टी नमी ।।
कृष्ण गीता में कहें हैं, पेड़ में पीपल हमी ।