देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ
उसको पाना जीवन का निशाना हुआ ।
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
तब से गैरो से भी तो यराना हुआ । मुखड़े पर उनकी है चांद की रोशनी नूर से उनके रोशन यह जमाना हुआ । कस्तूरी खुशबू रग रग समाया हुआ गुलबदन देख गुलशन सुहाना हुआ । सादगी की मूरत रूप की देवी वो तो कोकीला कंठ उनका तराना हुआ । प्यार करते नही प्यार हो जाता है प्यार...
हम आजाद है रे (चोका)
कौन है सुखी ?
इस जगत बीच
कौन श्रेष्ठ है ?
करे विचार
किसे पल्वित करे
सापेक्षवाद
परिणाम साधक
वह सुखी हैं
संतोष के सापेक्ष
वह दुखी है
आकांक्षा के सापेक्ष
अभाव पर
उसका महत्व है
भूखा इंसान
भोजन ढूंढता है
पेट भरा है
वह स्वाद ढूंढता
कैद में पक्षी
मन से उड़ता है
कैसा आश्चर्य
ऐसे है मानव भी
स्वतंत्र तन
मन परतंत्र है
कहते सभी
बंधनों से स्वतंत्र
हम आजाद है...
तरही गजल
खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।
इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।
नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।
जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।
असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने ...
दीपावली की शुभकामना (गीतिका छंद)
दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे ।
पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।।
वक्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े ।
लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े ।
कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो ।
अश्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो ।
सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना ।
मन पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फ्रेकना ।।
शुभ विचारी...
लोकतंत्र करे अपील (छंदमाला)
दोहाबड़े जोर से बज रहे, सुनो चुनावी ढोल ।साम दाम सब भेद से, झुपा रहे निज पोल ।।
सोरठालोकतंत्र पर्व एक, सभी मनाओं पर्व यह ।बने देश अब नेक,, करो जतन मिलकर सभी ।।
ललितगंभीर होत चोट वोट का, अपनी शक्ति दिखाओं ।जो करता हो काज देश हित, उनको तुम जीताओं ।।लोभ स्वार्थ को तज कर मतदाता, अपना देश बनाओ।हर हाथों में काम दिलावे, नेता ऐसा अजमाओ ।।
गीतिका देश के...
गजल-मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का, बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर, घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में पिता सा जो चले हर काम के अंजाम...
दोहावली
दोहे
ठहर न मन इस ठांव में, जाना दूसरे ठांव ।
ठाठ-बाट मिटते जहाँ, मिलते शीतल छांव ।।
तुम होगे हंसा गगन, काया होगी ठाट ।
मनुवा तुम तो हो पथिक , जीवन तेरा बाट ।
कर्मो की मुद्रा यहां, पाप पुण्य का हाट ।।
ले जायेगा साथ क्या, झोली भर ले छाट ।।
ले जाते उपहार हैं, कुछ ना कुछ उस धाम ।
कर्मों की ही पोटली, आते केवल काम ।।
दुख रजनी में है छुपा,...
6 कुण्डलियां
1.गणेश वंदना
विघ्न विनाश्ाक गणराज हे, बारम्बार प्रणाम ।
प्रथम पूज्य तो आप हैं, गणपति तेरो नाम ।।
गणपति तेरो नाम, उमा शिव के प्रिय नंदन ।
सकल चराचर मान, किये माँ-पितु का वंदन ।।
चरणन पड़ा ‘रमेश’, मान कर मन का शासक ।
मेटें मेरे कष्ट, भाग्य जो विघ्न विनाशक ।।
2. सरस्वती वंदना
वीणा की झंकार से, भरें राग उल्लास ।
अज्ञानता को नाश कर, देवें ज्ञान...
गणेश स्तुति
गणेश वंदना
दोहा -
जो गणपति पूजन करे, ले श्रद्धा विश्वास ।
सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।।
चौपाई
हे गौरा गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला । ।
सबसे पहले तेरा सुमरन । करते हैं हम वंदन पूजन ।।1।।
हे प्रभु प्रतिभा विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा अगम बताये ।।2।।
पिता...
शिक्षक दिवस दोहावली
गुरू गुरूता गंभीर है, गुरू सा कौन महान ।
सद्गुरू के हर बात को, माने मंत्र समान ।
लगते अब गुरूपूर्णिमा, बिते दिनों की बात ।
मना रहे शिक्षक दिवस, फैशन किये जमात ।
शिक्षक से जब राष्ट्रपति, बन बैठे इस देश ।
तब से यह शिक्षक दिवस, मना रहा है देश ।
कैसे यह शिक्षक दिवस, यह नेताओं का खेल ।
किस शिक्षक के नाम पर, शिक्षक दिवस सुमेल ।।
शिक्षक अब ना गुरू...
जय हो जय हो भारत माता (छंदबद्व रचना)
दोहा ‘
भारत माता है भली, भली स्वर्ग से जान ।
नमन करते शिश झुका, देव मनुज भगवान् ।।
चैपाई -
लहर लहर झंडा लहराता । सूरज पहले शीश झुकाता ।
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव जग विख्याता ।।
उत्तर मुकुट हिमालय साजे । उच्च शिखर रक्षक बन छाजे ।।
गंगा यमुना निकली पावन । चार-धाम हैं पाप नशावन ।।
दक्षिण सागर चरण पखारे । गर्जन करते बन रखवारे
सेतुबंध...
कर दो अर्पण
शहिदों का बलिदान पुकारता
क्यों रो रही है भारत माता ।
उठो वीर जवान बेटो,
भारत माता का क्लेश मेटो ।
क्यों सो रहे हो पैर पसारे
जब छलनी सीने है हमारे ।
तब कफन बांध आये हम समर,
आज तुम भी अब कस लो कमर ।
तब दुश्मन थे अंग्रेज अकेले
आज दुश्मनों के लगे है मेले ।
सीमा के अंदर भी सीमा के बाहर भी,
देष की अखण्ड़ता तोड़ना चाहते है सभी ।
कोई नक्सली बन नाक में...
वजूद
वजूद,
आपका वजूद
मेरे लिये है,
एक विश्वास ।
एक एहसास .....
खुशियों भरी ।
वजूद,
आपका वजूद
मेरे साथ रहता,
हर सुख में
हर दुख में
बन छाया घनेरी ।
वजूद,
आपका वजूद
मेरा प्यार ..
..............‘‘रमेश‘‘...............
वर्षागीत
श्यामल घटा घनेरी छाई,
शीतल शीतल नीर है लाई ।
धरती प्यासी मन अलसाई,
तपते जग की अगन बुझाई ।।
खग-मृग पावन गुंजन करते,
नभगामी नभ में ही रमते ।
हरितमा धरती के आंचल भरते,
रंभाते कामधेनु चलते मचलते ।।
कृषक हल की फाल को भरते,
धान बीज को छटकते बुनते ।
खाद बिखेरते हसते हसते,
धानी चुनरिया रंगते रंगते ।।
सूखी नदी की गोद भरने लगी है,
कल कल ध्वनि बिखेरने लगी...
त्रिवेणी
1.आंखों से झर झर झरते है झरने,
मन चाहता है मर मर कर मरने
जब आता है उनका ख्याल मन में
2. सावन की रिमझिम फुहारे व झुले
चल सखी मिल कर साथ झूले
बचपन के बिझुड़े आज फिर मिले
3. तू चल रफ्ता रफ्ता मै दोड़ नही सकता
मन करता है ठहर जाने को टूट गया हू मै
महंगाई जो सुरसा बन गई है रे जीवन
4. मन है उदास...
कैसे पेश करू
अपने देश का हाल क्या पेश करूं
अपनो को ये नजराना कैसे पेश करूं
सोने की चिडि़या संस्कारो का बसेरा
टूटता बसेरा उड़ती चिडि़या ये चित्र कैसे पेश करू
जिसने किया रंग में भंग देख रह गया दंग
उन दगाबाजो की दबंगई कैसे पेश करू
इस धरा को जिसे दिया धरोहर सम्हालने को
उन रखवारो की चोरी की किस्से कैसे पेश करूं
वो खुद को कहते है दुख सुख का साथी हमारा
भुखो से छिनते...
जरा समझना भला
ये शब्द कहते क्या है जरा समझना भला
शब्दों से पिरोई माला कैसे लगते हैं भला
दुख की सुख की तमाम लम्हे हैं पिरोये,
विरह की वेदना प्रेम की अंगड़ाई भला
कवि मन केवल सोचे है या समझे भी
उनकी पंक्तिया को पढ़ कर देखो तो भला
जिया जिसे खुद या और किसी ने यहां
अपने कलम से फिर जिंदा तो किया भला
आइने समाज का बना उतारा कागज पर
कितनी सुंदर चित्र उकेरे है देखो...
जिस तरह
मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
..........रमेश‘.......
क्यों रूकते हो
बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को, इसे क्यों रोकते हो ।
मंजिल है अभी दूर, कठिनाईयों से क्यों डरते हो ।।
ठान लिये हो जब अपना वजूद बनाना तो क्यो रूकते हो ।
चढ़नी है अभी चढ़ाई तो ऊंचाई देख क्यों डरते हो ।।
रात का अंधेरा सदा छाया रहता है ऐसा तुम क्यो सोचते हो ।
अंधेरे को चिरता दिनकर है आया फिर तुम क्यों रूकते हो ।।
चिंटी कितने बार गिरता फिर सम्हलता...
देखी है हमने दुनिया
देखी है हमने दुनिया,
फूक से पहाड उडाने वाले,
कागज की किस्ती भी नही चला पाते है ।
देखी है हमने दुनिया,
आसमान से चांद सितारे तोड लाने वाले,
जीवन भर साथ निभा भी नही पाते ।
देखी है हमने दुनिया,
नैनो की भाषा समझने वाले,
चीख पुकार भी सुन नही पाते ।
देखी है हमने दुनिया,
इश्क को जिस्म की अरमा समझने वाले,
इस जहां में किसी से इश्क निभा नही पाते ...
मन का साथी
धड़कन में,
धड़कती है तू ही,
श्वास प्रश्वास बन ।
जीवन मेरा,
सांसो से ही हीन है,
जीना कैसे हो ।
मेरी पूजा तू,
प्रेम अराधन तू,
रब जैसे हो ।
मेरा जीवन,
नीर बिना मछली,
जीना जैसे हो ।
चंद्रमा बीन,
पूर्णमासी का रात,
भला कैसे हो ।
तुझ बिन मै,
लव बीन दीपक,
साथ जैसे हो ।
मन का साथी,
चिड़या सा चहको,
खुला आंगन ।
-रमेशकुमार सिंह चैहान...
मधुर मधुर याद
मधुर मधुर याद है आती, मन को नये पंख लगाती ।
संस्मरण आकाश में उड़ती, मन कलरव गानसुनाती ।।
बालगीत गाकर मुझको मां के गोद में सुलाती ।
लोरी गा थपकी दे कर नींदिया को है बुलाती ।
मित्रों की आवाज दे बचपना याद दिला रहे ।
कंचे, गिल्ली-डंडा, सब कुछ याद आ रहे ।
स्कूल का बस्ता, गुरूजी का बेद कहां भुलाये ।
गुरूजी का ज्ञान जीवन में आज काम...
जरूरी तो नही
देखते सुनते है जो हम अपने चारों ओर, विचारों में घुल मिल जाये जरूरी तो नही ।
विचारों में जो विचार घुल मिल जाये,परिलक्षित हो कर्मो में जरूरी...
है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर
है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर, जो कतले आम मचाते हो,है कौन सा धरम तुम्हारा, जो इंनसानियत को ही नोच खाते हो ।क्या मिला है अभी तक आगें क्या मिल जायेगा,क्यों करते हो कत्ले आम समझ में तुम्हे कब आयेगा ।निर्बल, अबला, असहायों पर छुप कर वार क्यों करते हो,अपने संकीर्ण विचारों के चलते, दूसरों का जीवन क्यों हरते हो ।अपनों को निरीह मनुश्यों का मसीहा क्यों...
मेरी अर्धांगनी
प्यार करती है वह मुझको दुलार करती है,
ख्याल करती वह हर पल मेरे लिये ही जीती है ।
डर से नजरें झुकाती नही सम्मान दिखाती है, साथ हर पल रह कर दुख सुख में साथ निभाती है ।
लड़ाई नोक झोक से जीवन में उतार चढ़ाव लाती है, जिंदगी के हर रंग को रंगती जीवन को रंगीन बनाती है ।
वही मेरी प्रियसी मेरी जीवन संगनीय...
पसीना बहाना चाहिये
दुनिया में दुनियादारी चलानी है, सभी रिस्तेदारी निभानी है,दुनिया का आनंद जो लेनी है, तो पैसा कमाना चाहिये ।
सीर ऊचा करके जीना है, अपने में अपनो को जीना है,अपने दुखों को सीना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।
किसी से प्रेम करना है, किसी का दुख हरना है,किसी को खुश करना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।
तिर्थाटन करना है, पर्यटन करना है,दान करना है, तो पैसा कमाना...
वह
वह,सौम्य सुंदर,एक परी सी ।वह,निश्चिल निर्मल,बहती धारा सी ।वह,शितल मंद सुगंध,बहती पुरवाही सी ।वह,पुष्प की महक,चम्पा चमेली रातरानी सी ।वह,पक्षियों की चहक,पपिहे कोयल मतवाली सी ।वह,श्वेत प्रकाश,चांद पूर्णमासी सी ।वह,मेरी जीवन की आस,रगो में बहती रवानगी सी ।वह,मेरा विश्वास,जीवन में सांसो की कहानी सी ।वह,मेरा प्रेम,श्याम की राधारानी सी ।...‘‘रमेश‘...
. हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन

हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन । मां कर दे हमारे पापा का शमन ।।तू ही है अखिल विश्व माता ।सारा विष्व तेरे ही गुन गाता ।।अपने भक्तो का पुत्रवत करते हो जतन ।हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।तू ही सर्वशक्ति का आधार है ।कोई न पाये...
जनक भगवान समान
जिसकी ऊंगली पकड़कर चलना सीखा, मेरे लिये जिसने चला घोड़ा सरीखा । मेरे चलने से जिसके मुँह से वाह निकला, मेरे गिरने पर जिसके मुँह से आह निकला । मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों का जिसने रखा ध्यान, जिसने अपने मुॅंह का...
हे भगवान मुझे टी.वी. बना दे
मंदिर में मत्था टेकने बहुत लोग जाते हैं,और अपने मन की मुराद अपने मन में दुहराते हैं ।एक बार एक बच्चा अपने मां बाप के साथ मंदिर आया,सबको भगवान के सामने घुटने टेक बुदबुदाते हुये पाया ।बच्चा ये देख कुछ समझ नही पाया उसने मां से फरमाया,मन में जो हो इच्छा यहां कह दो भगवान सब देते है मां ने बताया ।बच्चे...
जुगाड़
जुगाड़ जुगाड़ से जुगाड़ है, जुगाड़ में कहां बिगाड है, जुगाड़ में जुगाड़ है, जुगाड़ से ही देश बिमार है । जुगाड़ के जुगाड़...
रे मन
ठहर न तू इस ठांव रे मन ।
जाना तुझे और ठांव रे मन ।।
जिस ठांव पर रह जायेगा केवल ठाट रे मन ।
वहां कहां किसी का रहता ठाठ रे मन ।।
तू तो पथ का मात्र पथिक रे मन ।
यह तो है केवल तेरा बाट रे मन ।।
क्या ले जायेगा तू अपने साथ रे मन ।
कर्मो के इस बाजार से तू छांट ले रे मन ।।
किसी के घर ले जाते कुछ न कुछ सौगात रे मन ।
तू भी ले जाके कुछ न कुछ उपहार बाट रे...
क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है
हे गोवर्धन गिरधरी बांके बिहारी,हे नारायण नर हेतु नर तन धारी ।दया करो दया करो हे दया निधान,आज फिर जगा सत्ता का इंद्राभिमान ।।स्वार्थ परक राजनिति की आंधी,आतंकवाद, नक्सवाद की व्याधी ।अंधड़ सम भष्ट्राचार उगाही चंदाभाई भतीजेबाद का गोरख धंधा ।।आकंठ डूबे हुये है जनता और नेताजो ना हुआ द्वापर सतयुग और त्रेता ।नारी संग रोज हो रहे बलत्कार,मासूमो पर असहनीय अत्याचार...
निरंकुश हो चला है समाज

दिल्ली में जो हुआ,जोरदार तमाचा है देश और धरम को ।जितना लताड लगाई जाये, कम है दरिंदों की इस करम को ।।जिम्मेदार है केवल शासन प्रशासन, मिटा दे इस भरम को ।नैतिकता की नही किसी को भान, अनैतिकता पहुंच गई है चरम को ।।निरंकुश हो चला है समाज, मौन पनाह दे रहे...
यह तो भारत माता है

जगमग करती धरती हमारी,यह अखिल विश्व से न्यारा है।उत्तर में हिमालय का किरीट,दक्षिण में रत्नाकर ने चरण पखारा है।जहां के नदी नाला शिला पत्थर,सब में देवी देवता हमारा है ।यहां जंगल झांड़ी पशु पक्षी,सबने हमारा जीवन सवारा है ।क्रिस्मस होली ईद दिवालीसभी त्यौहार हमारा है ।यहां के रिति...
// अब तो आ जाओ साजन मेरे पास //

कब से गये हो तुम सागर पार ,
मुझे छोड़ गये हो मझदार ,
तुझ बिन नही मेरे जीवन की आस,
अब तो आ जाओ मेरे साजन पास ।
तन की हल्दी चिड़ाती मुझे,
हाथों की मेंहंदी रूलाती मुझे,
न साज न श्रृंगार नही अब...
क्या कहू तुझको

क्या कहू वासुदेव का लाला तुझको, या कहू देवकी का लाला तुझको,
ब्रज का दुलारा तु तो नंद का छोरा याशेदा का लाला है ।
क्या कहू गोपाला तुझको,या कहू ग्वाला तुझको,
मोर पंख वाला तु तो गऊवें चराने वाला है ।
क्या कहूं माखनचोर तुझको, या कहूं चितचोर तुझको,
मुख बासुरी वाला तु...
हे दयामयी मां शारदे

हे दयामयी मां शारदे, मेरा जीवन संवार दें ।
तू तो ज्ञान की देवी मां, मुझे केवल ज्ञान का उपहार दें ।।
वर्ण-वर्ण, छन्द-छन्द, सुर-संगीत सभी हैं तेरे कण्ठ ।
कर सोहे वीणा तेरे मां, मेरे जीवन भी में वीणा झंकार दें।।
सप्त सुर सप्त वर्ण से, श्वेत वर्ण तुझे सुहाती...
वाणी
जिहवा रसना ही नही वाणी भी होय ।
छप्पपन भोग नाना रस चटकारे हरकोय ।।
वाणी के पांच श्रृंगार होत है समझे सब कोय ।
सत्य,मृदु, सार , हितैषी और मितव्ययी होय ।।
सदा सत्य बोले जो कर्णप्रिय होय ।
बोल हो कम सही पर सारगर्भित होय ।।
हित अहित विचारिये फिर अपना मुख खोल ।
वाणी से ही मित्र शत्रु और शत्रु मित्र होय ।।
................‘‘रमेश‘‘..................
इससे तो मै बांझ भली थी

कितनी मिन्नते और अरमा से मैंने उसको पाया था ,
कितने लाड एवं प्यार से उसे मैंने गोद में खिलाया था ।
पर मुझे ये क्या पता रे जाल्मि तू तों मां के कोख पर कंलक लगायेगा ,
होके जवा तू हवसी बन मासूम के इज्जत से ही खेल जायेगा ।
तूने मासूम की इज्जत का नही मां की ममता को तार...
बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को

बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को, इसे क्यों रोकते हो ।
मंजिल है अभी दूर, कठिनाईयों से क्यों डरते हो ।।
ठान लिये हो जब अपना वजूद बनाना तो क्यो रूकते हो ।
चढ़नी है अभी चढ़ाई तो ऊंचाई देख क्यों डरते हो ।।
रात का अंधेरा सदा छाया रहता है ऐसा तुम क्यो सोचते हो ।
अंधेरे को चिरता दिनकर...
हे मानव

हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।
मनव होकर दानव होने पर दे रहे हो तूल ।
धर्मरत कर्म पथ पर आगे बढ़ने का जो था मान ।
शांति और पथ प्रदर्षक का जो था सम्मान ।।
आज हमारे मान सम्मान फांसी में रहे हैं झूल ।
हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।।
जियो और जिने दो का नारा...
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