‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

आॅखों की भाषा समझ

आॅखों की भाषा समझ, आखें खोईं होश ।
चंचल आखें मौन हो, झूम रहीं मदहोश ।
झूम रहीं मदहोश, मूंद कर अपनी पलकें ।
स्वर्ग परी वह एक, समेटे अपनी अलकें ।।
हुई कली जब फूल, खिली मन में अभिलाषा । ।
मन में भरे उमंग,समझ आॅखों की भाषा ।।

-रमेश चैहान

उलचे कितने नीर

      पानी के हर स्रोत को, रखिये आप सहेज ।
      व्यर्थ बहे ना बूॅद भी, करें आप परहेज ।।
     
      वर्षा जल को रोकिये, कुॅआ नदी तालाब ।
      इन स्रोतो पर ध्यान दें, तज नल कूप जनाब ।।
 
      कुॅआ बावली खो गया, गुम पोखर तालाब ।
      स्रोत सामुदायिक नही, खासो आम जनाब ।।
 
      स्रोत सामुदायिक कभी, बांट रहा था प्यार ।
      टैंकर आया गांव में, लेकर पहरेदार ।।
 
      खींचे जल जल-यंत्र से, धरती छाती चीर ।
      स्वेद बूॅद तन पर नही, जाने कैसे पीर ।।
 
      रस्सी बाल्टी हाथ से, उलचे कितने नीर ।
      एक कुॅआ था गांव में, मानों सागर क्षीर ।।
 
      घाट घाट तालाब में, नदी नदी में घाट ।
      पाल रखे थे गांव को, पाले राही बाट ।।
 
      अपनी गलती झांक ले, कहां गांव का प्यार ।
      बात बात में कोसते, दोषी यह सरकार ।।

मुक्त करो जल स्रोत

पानी के हर बूंद को, गटक रहा मुॅह खोल ।
टपक टपक हर बूॅंद भी, खोल रहा है पोल।।
खोल रहा है पोल, किये जो गलती मानव ।
एक एक जल स्रोत, किये भक्षण बन दानव ।।
कुॅआ नदी तालाब, शहर निगले मनमानी ।
मुक्त करो जल स्रोत, मिले तब सबको पानी ।।

भीमराव अम्बेड़कर के संदेश

भीमराव अम्बेड़कर, दिये अमर संदेश ।
भेद भाव को छोड़ कर, एक रहे यह देश ।।

उनकी आत्मा आज तो, पूछे एक सवाल ।
जाति धर्म के नाम पर, क्यों हो रहा बवाल ।।

सेक्यूलर के नाम पर, नेता किये प्रपंच ।
मां अरू मौसी मान कर, करते केवल लंच ।।

तड़प रहा है आज तो, संविधान का प्राण ।
पंथ जाति निरपेक्ष नही, नही राष्ट्र सम्मान ।।

संविधान इतना कठिन, समझ सके ना देश ।
श्याम वस्त्र में कैद कर, बना रखे परिवेश ।।

कीजिये रक्षा माता

माता की जयकार से, गूंजे है दरबार ।
माता तेरी भक्ति में, झूमे है संसार ।।
झूमे है संसार, भेट श्रद्धा के लाये ।
रखे भक्त उपवास, मनौती तुझे सुनाये।।
बढ़े असुर दल आज, पाप अब सहा न जाता ।
दुष्ट बचे ना एक, कीजिये रक्षा माता ।।

पानी हमको चाहिये

पानी हमको चाहिये, पानी से है प्राण ।
पानी में पानी गयो, जीवन मरण समान ।।
जीवन मरण समान, कहे ना कोई नेता ।
सूखे की यह मार, दिखें हैं केवल रेता ।।
ढ़ूंढ़ घूट भर नीर, दरारों में दिलजानी ।
मांगे हैं नर नार, दीजिये हमको पानी ।।

स्वर्ग

सास बहू साथ में, करतीं मिलकर काम ।
काम खेत में कर रहें, लखन संग तो राम ।
राम राज परिवार में, कुटिया लागे स्वर्ग ।
स्वर्ग शांति का नाम है, मिले जगत निसर्ग ।।

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