‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

पानी हमको चाहिये

पानी हमको चाहिये, पानी से है प्राण ।
पानी में पानी गयो, जीवन मरण समान ।।
जीवन मरण समान, कहे ना कोई नेता ।
सूखे की यह मार, दिखें हैं केवल रेता ।।
ढ़ूंढ़ घूट भर नीर, दरारों में दिलजानी ।
मांगे हैं नर नार, दीजिये हमको पानी ।।

स्वर्ग

सास बहू साथ में, करतीं मिलकर काम ।
काम खेत में कर रहें, लखन संग तो राम ।
राम राज परिवार में, कुटिया लागे स्वर्ग ।
स्वर्ग शांति का नाम है, मिले जगत निसर्ग ।।

नित्य ध्येय पथ पर चलें....

नित्य ध्येय पथ पर चलें, जैसे चलते काल ।
सुख दुख एक पड़ाव है, जीना है हर हाल ।।
रूके नही पल भर समय, नित्य चले है राह ।
रखे नही मन में कभी, भले बुरे की चाह ।
पथ पथ है मंजिल नही, फॅसे नही जंजाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें....
जन्म मृत्यु के मध्य में, जीवन पथ है एक ।
धर्म कर्म के कर्म से, होते जीवन नेक ।।
सतत कर्म अपना करें, रूके बिना अनुकाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें....
कर्म सृष्टि आधार है, चलते रहना कर्म ।
फल की चिंता छोड़ दें, समझे गीता मर्म ।।
चलो चलें इस राह पर, सुलझा कर मन-जाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें....
राह राह ही होत है, नही राह के भेद ।
राह सभी तो साध्य है, मांगे केवल स्वेद ।
साधक साधे साधना, तोड़ साध्य के ढाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें....
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भारती भारत की जय

जय जय जय मां भारती, जय जय भारत देश ।
हिन्दू मुस्लिम एक हों, छोड़ सभी विद्वेष ।।
छोड़ सभी विद्वेष, धर्मगत जो तुम पाले ।
राष्ट्र धर्म हों एक, वतन के हों रखवाले ।।
बढ़े प्रेम विश्वास, तजें अपने मन का भय ।
बोलें मिलकर साथ, भारती भारत की जय ।।

भींज रहा मन तरबतर

अधर शांत खामोश है, नैन रहें हैं बोल ।
मन की तृष्णा लालसा, जा बैठे चषचोल ।। (चशचोल-पलक)

नैनों की भाषाा समझ, नैनों ने की बात ।
प्रेम पयोधर घुमड़ कर, किये प्रेम बरसात ।।

भींज रहा मन तरबतर, रोम रोम पर नेह ।
हृदय छोड़ मन बावरा, किये नैन को गेह ।।

भान देह का ना रहे, बोले जब जब नैन ।
नैन नैन में गुॅथ गया, पलक न बोले बैन ।।

खड़ी हुई हे बूत सी, हांड मांस का देह ।
नयन चुराये नयन को, लिये नयन पर नेह ।।

मोहन प्यारे

मोहन प्यारे हो कहां, ढ़ूढ़ रहा मन चैन ।
रात दिवस सब एक सा, लगे श्याम बिन रैन ।
लगे श्याम बिन रैन, कहे ग्वालन कर जोरे।
जैसे जल बिन मीन, दशा मन की है मोरे ।
बांध रखे हो आप, किये हम पर सम्मोहन ।
अब आ जाओ पास, कहां हो प्यारे मोहन ।

सत्य को ग्रहण लगा है

कितने झूठे लोग हैं, झूठ रहे इठलाय ।
न्याय खोजता सत्य को, सत्य कौन बतलाय ।
सत्य कौन बतलाय, सत्य को ग्रहण लगा है ।
आंखे पट्टी बांध, न्याय भी आज ठगा है ।
एक चांद ही सत्य, झूठ तो तारे जितने ।
धनी बली है मुक्त, बंद निर्धन हैं कितने ।

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