ध्वनि एक गुंजीत है, जैसे नभ ओंकार ।
जीव जीव निर्जीव में, माॅ माॅ की झंकार ।।
कलकल छलछल है किये, नदियों की जल धार ।
खेल रही माॅ गोद में, करती वह मनुहार ।।
कलकल की हर ध्वनि में, शब्द एक है सार ।
माॅ कण-कण में व्याप्त हो, बांट रही है प्यार ।।
कलरव की हर टेर में, शब्द वही है एक ।
खग नव चीं-चीं बोलती, माॅ भोली अरू नेक ।।
गले लगे फल फूल से, आॅचल लिये समेट ।
पत्ती पत्ती डोल रही, देती ममता भेट ।।
प्रथम बोल हर कंठ का, माॅ माॅ शब्द महान ।
बालक माॅ को मानते, अपना सकल जहान ।।
सृष्टा पालक एक है, माॅ है जिसका नाम ।
यही एक भगवान है, मिलती जो हर धाम ।।
जीव जीव निर्जीव में, माॅ माॅ की झंकार ।।
कलकल छलछल है किये, नदियों की जल धार ।
खेल रही माॅ गोद में, करती वह मनुहार ।।
कलकल की हर ध्वनि में, शब्द एक है सार ।
माॅ कण-कण में व्याप्त हो, बांट रही है प्यार ।।
कलरव की हर टेर में, शब्द वही है एक ।
खग नव चीं-चीं बोलती, माॅ भोली अरू नेक ।।
गले लगे फल फूल से, आॅचल लिये समेट ।
पत्ती पत्ती डोल रही, देती ममता भेट ।।
प्रथम बोल हर कंठ का, माॅ माॅ शब्द महान ।
बालक माॅ को मानते, अपना सकल जहान ।।
सृष्टा पालक एक है, माॅ है जिसका नाम ।
यही एक भगवान है, मिलती जो हर धाम ।।