प्यार हुआ व्यपार (दोहे)
लगता है अब प्यार भी, हुआ है इक व्यपार ।
नाप तौल के कर रहे, छोरा छोरी प्यार ।।
छोरा देखे रूप को, सुंदर तन की चाह ।
जेब परख कर छोकरी, भरती ठंडी आह ।।
राधा मीरा ना बने, बने नही है राम ।
गोपी सारी छोकरी, छोकरा बने श्याम ।।
पहले कहते लोग थे, मत हो बेकारार ।
प्यार किया जाता नही , हो जाता है प्यार ।।
करने से होता नही, जब किसी को प्यार ।
मारा मारा क्यों फिरे, करने को इकरार ।।
प्यार नही है वासना, वासना नही प्यार ।
सौ फिसदी यह सत्य है, थोथी है तकरार ।।
नाप तौल के कर रहे, छोरा छोरी प्यार ।।
छोरा देखे रूप को, सुंदर तन की चाह ।
जेब परख कर छोकरी, भरती ठंडी आह ।।
राधा मीरा ना बने, बने नही है राम ।
गोपी सारी छोकरी, छोकरा बने श्याम ।।
पहले कहते लोग थे, मत हो बेकारार ।
प्यार किया जाता नही , हो जाता है प्यार ।।
करने से होता नही, जब किसी को प्यार ।
मारा मारा क्यों फिरे, करने को इकरार ।।
प्यार नही है वासना, वासना नही प्यार ।
सौ फिसदी यह सत्य है, थोथी है तकरार ।।
बसे प्राण तो गांव के खेत में (शक्ति छंद)
शहर के किनारे इमारत जड़े ।
हरे पेड़ हैं ढेर सारे खड़े ।
सटे खेत हैं नीर से जो भरे ।
कृषाक कुछ जहां काम तो हैं करे ।।
हमें दे रहा द्श्य संदेश है ।
गगन पर उड़े ना हमें क्लेश है ।
जमी मूल है जी तुम्हारा सहीं ।
तुम्हें देख जीना व मरना यहीं ।।
करें काज अपने चमन के सभी ।
न छोड़े वतन भूलकर के कभी ।।
बसे प्राण तो गांव के खेत में ।
मिले अन्न जिनके धुली रेत में ।।
बढ़ायें धरा धाम के शान को (शक्ति छंद)
कई लोग पढ़ लिख दिखावा करे ।
जमी काज ना कर छलावा करे ।।
मिले तृप्ति ना तो बिना अन्न के ।
रखे क्यो अटारी बना धन्न के ।।
जमी काज ना कर छलावा करे ।।
मिले तृप्ति ना तो बिना अन्न के ।
रखे क्यो अटारी बना धन्न के ।।
भरे पेट बैठे महल में कभी ।
मिले अन्न खेती किये हैं तभी ।।
सभी छोड़ते जा रहे काम को ।
मिले हैं न मजदूर भी नाम को ।।
मिले अन्न खेती किये हैं तभी ।।
सभी छोड़ते जा रहे काम को ।
मिले हैं न मजदूर भी नाम को ।।
न सोचे करे कौन इस काज को ।
झुका कर कमर भेद दें राज को ।।
चलें आज हम रोपने धान को ।
बढ़ायें धरा धाम के शान को ।।
झुका कर कमर भेद दें राज को ।।
चलें आज हम रोपने धान को ।
बढ़ायें धरा धाम के शान को ।।
कुन्डलिया छन्द (विषय- बेरोजगारी)
पढ़े-लिखे युवती युवक, ढूंढ रहें हैं काम ।
पढ़ लिख कर सब चाहते, लेना इसका दाम ।।
लेना इसका दाम, किये हैं व्यय अतिभारी ।
अभियंता की चाह, दिखाते अब लाचारी ।।
बनने तक को प्यून, पंक्ति में तैयार दिखे ।
बनने को सर्वेंट, सभी ये हैं पढ़े-लिखे ।।
-रमेश चौहान
पढ़ लिख कर सब चाहते, लेना इसका दाम ।।
लेना इसका दाम, किये हैं व्यय अतिभारी ।
अभियंता की चाह, दिखाते अब लाचारी ।।
बनने तक को प्यून, पंक्ति में तैयार दिखे ।
बनने को सर्वेंट, सभी ये हैं पढ़े-लिखे ।।
-रमेश चौहान
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