‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

जुगाड़

                           जुगाड़
   
    जुगाड़ से जुगाड़ है, जुगाड़ में कहां बिगाड है,
     जुगाड़ में जुगाड़ है, जुगाड़ से ही देश बिमार है ।
   जुगाड़ के जुगाड़ में, जुगाड़ी ही सबसे बड़ा खिलाडी है,
  जुगाड़ के इस खेल में, हारती भोली-भाली जनता हमारी है ।

    ...................‘‘रमेश‘‘.........................

रे मन

ठहर न तू इस ठांव रे मन ।
जाना तुझे और ठांव रे मन ।।

जिस ठांव पर रह जायेगा केवल ठाट रे मन ।
वहां कहां किसी का रहता ठाठ रे मन ।।

तू तो पथ का मात्र पथिक रे मन ।
यह तो है केवल तेरा बाट रे मन ।।

क्या ले जायेगा तू अपने साथ रे मन ।
कर्मो के इस बाजार से तू छांट ले रे मन ।।

किसी के घर ले जाते कुछ न कुछ सौगात रे मन ।
तू भी ले जाके कुछ न कुछ उपहार बाट रे मन ।।

सुख की उजयारी में छुपा दुख का अंधियारी रे मन ।
पाना है प्रतिसाद तो दुख का पल काट ले रे मन ।।

क्यो पड़ते हो पाप पुण्य के झमेले मे रे मन ।
मानव से मानवता का संबंध बांध ले रे मन ।।

प्राणी प्राणी में बसता प्राण है रे मन ।
हर प्राणी को प्रेम से तू छांद ले रे मन ।।
...............‘‘रमेश‘‘.....................

क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है



हे गोवर्धन गिरधरी बांके बिहारी,
हे नारायण नर हेतु नर तन धारी ।
दया करो दया करो हे दया निधान,
आज फिर जगा सत्ता का इंद्राभिमान ।।

स्वार्थ परक राजनिति की आंधी,
आतंकवाद, नक्सवाद की व्याधी ।
अंधड़ सम भष्ट्राचार उगाही चंदा
भाई भतीजेबाद का गोरख धंधा ।।

आकंठ डूबे हुये है जनता और नेता
जो ना हुआ द्वापर सतयुग और त्रेता ।
नारी संग रोज हो रहे बलत्कार,
मासूमो पर असहनीय अत्याचार ।।

जब अधर्म अनाचार हंसता है,
तो दीन हीन ही फंसता है ।
न जीता है  न मरता है,
तडप तडप कर यही कहता है ।

क्या अब भी पुभु धर्म बचते दिखता है ।
क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है ।।

निरंकुश हो चला है समाज

   
दिल्ली में  जो हुआ,
जोरदार तमाचा है देश और धरम को ।
जितना लताड लगाई जाये,
कम है दरिंदों की इस करम को ।।

जिम्मेदार है केवल शासन प्रशासन,
मिटा दे इस भरम को ।
नैतिकता की नही किसी को भान,
अनैतिकता पहुंच गई है चरम को ।।

निरंकुश हो चला है समाज,
मौन पनाह दे रहे है इस शरम को ।
नही करता कोई आज,
प्रयास कोई ऐसा मिटाने इस जलन को ।।

नग्नतावाद की संस्कृति जो आयातीत हुआ,
तुला है जड़ से मिटाने हमारे चाल चलन को ।
पाश्चात्यवाद की आंधी,
व्याधि बन खोखला कर रहा है हमारे मरम को ।।

कानून चाहे सख्त से सख्त हो,
मिटा न पायेगा समाज के इस कलंक को ।
मिटाना हो गर ये अभिषाप,
तो जगाना होगा संस्कार, हया, शरम को ।।।
................‘‘रमेश‘‘........................

यह तो भारत माता है



जगमग करती धरती हमारी,
यह अखिल विश्व से न्यारा है।
उत्तर में हिमालय का किरीट,
दक्षिण में रत्नाकर ने चरण पखारा है।

जहां के नदी नाला शिला पत्थर,
सब में देवी देवता हमारा है ।
यहां जंगल झांड़ी पशु पक्षी,
सबने हमारा जीवन सवारा है ।

क्रिस्मस होली ईद दिवाली
सभी त्यौहार हमारा है ।
यहां के रिति रिवाज पर्व सभी,
हमारे जीवन का सहारा है ।

जहां ईश्वर अल्ला गाड सभी ने,
हमारे जीवन को संवारा है ।
यहां हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई,
इन सब में भाईचारा है ।

भांति भांति के प्रांत यहां भांति भांति के लोग,
भांति भांति के सुमन से बगिया को संवारा है ।
यह केवल जमीन का टुकड़ा कहां है,
यह तो भारत माता है ऐसा स्वर्ग कहां है ।
................‘‘रमेश‘‘........................

// अब तो आ जाओ साजन मेरे पास //


कब से गये हो तुम सागर पार ,
मुझे छोड़ गये हो मझदार ,
तुझ बिन नही मेरे जीवन की आस,
अब  तो आ जाओ मेरे साजन पास ।
   
    तन की हल्दी चिड़ाती मुझे,
    हाथों की मेंहंदी रूलाती मुझे,
    न साज न श्रृंगार नही अब कुछ खास,
    अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास।

तुझ बिन मेरे सांसे है मध्यम,
अब न मुस्कुराता है मेरा मन,
मेरे मन का तु ही है विश्वास,
अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास।
   
    तस्वीर देख दिन कटता है मेरा,
    सांझ समान ही है अब तो सबेरा,
    तुझ बीन अंधेरा ही है आसपास,
    अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास ।

कह गयें थे जल्दी आने को,
सभी गम को भुलाने को,
सो हो भी नहीं सकता उदास,
अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास ।
..............‘‘रमेश‘‘..............................

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