‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

एक प्रश्न अंतस खड़ा

पंथ पंथ में बट गया, आज सनातन धर्म ।दृष्टि दृष्टि का फेर है, अटल सत्य है मर्म ।। परम तत्व अद्वैत है, सार ग्रंथ है वेद । द्वैत किये हैं पंथ सब, इसी बात का खेद ।। मेरा मनका श्रेष्ठ है, बाकी सब बेकार । गुरुवर कहते पंथ के, समझो बेटा सार ।। जिसे दिखाना सूर्य है, दिखा रहे निज तेज । मुक्त कराना छोड़ कर, बांध रखे बंधेज ।। मैं मूरख यह सोचता, गुरु से बड़ा...

गलत गलत है मान लो

गलत गलत है मान लो, रखे नियत क्यो खोट । तेरे इस व्यवहार से, लगा देश को चोट ।। वैचारिक मतभेद से, हमें नही कुछ क्लेष । पर क्यो इसके नाम पर, बांट रहे हो देश ।। माँ को गाली जो दिये,  लिये शत्रु को साथ । कैसे उनके साथ हो, बनकर उनके नाथ ।। तुष्टिकरण के पौध को, सींच रहें जो नीर । आज नही तो कल सही, पा़येंगे वो पीर ।। अंधों से कमतर नही, मूंद रहे जो आंख...

प्रश्न लियें हैं एक

मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।। नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि...

सज्जन

नम्र अमीरी में रहें, जैसे रहते दीन ।धनी दीनता में रखें, उदारता शालीन ।रूख हवा का देख कर, बदले ना जो राह ।सज्जन उसको जानिये, निश्चित चिरकालीन ।। -रमेश चौहान...

देश पर जीते मरते

कण कण मेरे देश का, ईश खुदा का रूप । खास आम कोई नही, जन जन प्रति जन भूप ।। जन जन प्रति जन भूप, प्राण हैं अर्पण करते । सभी सिपाही देश, देश पर जीते मरते ।। फसे शत्रु के फेर, लोग कुछ हारे तन मन । उन्हें लाओं राह, पुकारे पावन कण कण ।। ...

शिक्षा नीति परीख

शिक्षा सबको चाहिये, मिले सभी को सीख । सीख रोग से मुक्त हो, बने नही यह बीख ।। बीख बोय कुछ लोग हैं, घृणा किये निज देश । देश प्रेम हो मूल में, शिक्षा नीति परीख । ...

गढ़ें जन मन सौहार्द

माँ शारद के पूत हो, धरो लेखनी हाथ । मानवता के गीत लिख, दीन हीन के साथ ।। दीन हीन के साथ, शब्द सागर छलकाओ । हर मुख पर मुस्कान, नीर सम तुम बरसाओ ।। सत्य सुपथ के शब्द, गढ़ें जन मन सोहारद । भुलना नहीं ‘रमेश‘, मातु तेरी माॅ शारद ।। *सोहारद-सौहार्द ...

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