‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

विश्व सिकल सेल दिवस पर कुण्डलिया

बड़ दुखदायी रोग है, नाम है सिकल सेल । खून करे हॅसिया बरन, दर्द का करे खेल ।। दर्द का करे खेल, जोड़ में  फॅसकर हॅसिया  । नहीं इसका इलाज, दर्द झेले दिन रतिया।। फोलिक एसिड़ संग, खूब पानी फलदायी । शादी में रख ध्यान, रोग है बड़ दुखदायी ।। ...

योग दिवस पर दोहे

योग दिवस के राह से, खुला विश्व का द्वार । भारत गुरू था विश्व का, अब पुनः ले सम्हार ।।  गौरव की यह बात है, गर्व करे हर कोय ।  अपने ही इस देश में, विरोध काहे होय ।।  अटल रहे निज धर्म में, दूजे का कर मान ।  जीवन शैली योग है, कर लें सब सम्मान ।। जिसकी जैसी चाह हो, करले अपना काम । पर हो कौमी एकता, रखें जरूर सब ध्यान ।। ...

भ्रष्टाचार पर दोहे

मानवता हो पंगु जब, करे कौन आचार । नैतिकता हो सुप्त जब, जागे भ्रष्टाचार ।। प्रथा कमीशन घूस हैे, छूट करे सरकार । नैतिकता के पाठ का, है ज्यादा दरकार ।। जनता नेता भ्रष्ट है, भ्रष्ट लगे सब तंत्र । नेत्रहीन कानून है, दिखे कहां षडयंत्र ।। अपने समाज देश का, करो व्याधि पहचान । जनक व्याधि के आप ही, आपहि वैद्य महान ।। रिश्वत देना रोग है, रिश्वत...

चरण पखारे शिष्य के (कुण्डलिया)

चरण पखारे शिष्य के, शाला में गुरू आज । शिष्य बने भगवान जब, गुरूजन के क्या काज ।। गुरूजन के क्या काज, स्कूल में भोजन पकते । पढ़ना-लिखना छोड़, शिष्य तो दावत छकते ।। कागज का सब खेल, देख लो मन को मारे । हुये शिष्य सब पास, चलो अब चरण पखारे ।। ...

घोर-घोर रानी (चौपाई छंद)

काली-काली बरखा आई । हरी-हरी हरियाली लाई रिमझिम-रिमझिम  बरसे पानी । नम पुरवाही चले सुहानी बितत बिते पतझड़ दुखदायी । पुष्‍प-पत्र पल्लव हर्षाई वन उपवन अब लगे मुस्काने । खग-मृग मानव गाये गाने इंद्रधनुश नभ पर बन आये । देख-देख बच्चे हर्षाये रंग बै जा नी ह पी ना ला । बच्चे पढ़े थे पाठशाला तडि़त जब लाल आॅंख दिखाये । बादल भी नगाड़ा बजाये रण-भेरी को...

कुछ दोहे

उनको थोड़ा दर्द हो, होती मुझको पीर । यूं ही मेरी अंखिया, छलका देती नीर ।। मेरा मेरा सब कहे, किसका है संसार । छोड़ इसे पर लोग क्यों, जाये बेड़ापार ।। करना धरना कुछ नहीं, केवल करते शोर । भज ले रे मन राम तू, कहते खुद को छोड़ ।। रूप रंग जिसके नही, ना ही जिसके मोल । खास आम सब मांगते, पानी पानी बोल ।। पानी से ही प्राण है, पानी से ही सृष्टि । पंचतत्व...

दस दोहे

1. चूड़ी मुझसे पूछती, जाऊं किसके हाथ । छोड़ सुहागन जा रही, अब तो मेरा साथ । 2. रखे अपेक्षा पुत्र से, निश्चित इक बाप । नेक राह पर पुत्र हो, देवे ना संताप ।। 3. सच का पथ जग में कठिन, चले कौन उस राह । सच्चा झूठा कौन है, करे कौन परवाह ।। 4. खड़े हुये हैं रेल में, लिये बेटवा बांह । झूला जैसे झूलते, बेटा करते वाह ।। 5. बांटे से कम होत है, हृदय घनेरी...

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