‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

गुरू

जब छाये अंधेरा रोशनी फैलाता है गुरू, अंधे का लाड़ी बन मार्ग दिखाता है गुरू । कहते है ब्रह्मा बिष्णु महेश है चाकर आपके गुरू, निज सर्मपण से पड़ा चरण आकर आपके गुरू । न पूजा न पाठ न ही है मुझको कोई ज्ञान गुरू, चरण शरण पड़ा बस निहारता आपके चरणकमल गुरू । सारे अपराधो से सना तन मन  है मेरा गुरू, अपराध बोध से चरण पड़ा तेरे गुरू । दयावंत आप हे कृपालु...

अपनी कलम की नोक से

अपनी कलम की नोक से, क्षितिज फलक पर, मैंने एक बिंदु उकेरा है । भरने है कई रंग, अभी इस फलक पर, कुंचे को तो अभी हाथ धरा है । डगमगाती पांव से, अंधेरी डगर पर, चलने का दंभ भरा है । निशा की तम से, चलना है उस पथ पर, जिस पथ पर नई सबेरा है । राही कोई और हो न सही, अपने आशा और विश्वास पर, अपनो का आशीष सीर माथे धरा है...

एक गौरेया की पुकार

एक गौरैया एक मनुज से कहती है ये बोल, हे बुद्विमान प्राणी हमारे जीवन का क्या है मोल । अपने हर प्रगति को अब तो जरा लो तोल, सृष्टि के कण-कण में दिया है तूने विष घोल । क्या हम नही कर सकते कल कल्लोल, क्यो हो रही  हमारी नित्य क्रिया कपोल । इस सृष्टि में क्या हम नही सकते हिल-डोल, हे मनुज अब तो अपना मनुष्यता का पिटारा खोल । जो तेरा है वो मेरा भी...

बरखा रानी

मानसून ढूंढे पथ अपना । कृषक बुने जीवन का सपना पलक पावड़े बिछाय पथ पर । सभी निहारे अपलक नभ पर बरखा रानी क्यो रूठी है । धरती अब तक तो सूखी है आशाढ़ मास बितने को है । कृषक नैन अब रिसने को है आने को है अब तो सावन । यह जो अब मत लगे डरावन हे बरखा अब झलक दिखाओ । हमें और ना अधिक सताओ उमड़ घुमड़ के अब तो आओ । धरती के तुम प्यास बुझाओ छप्प छप्प खेलेंगे...

महंगाई

बढ़े महंगाई, करे कमाई, जो जमाखोर, मनमानी । सरकारी ढर्रा, जाने जर्रा, है सांठ गांठ, अभिमानी ।। अब कौन हमारे, लोग पुकारे, जो करे रक्षा, हम सब की । सीखें अर्थशास्त्र, भुल पाकशास्त्र, या करें भजन, अब रब की ।। -रमेशकुमार सिंह  चौह...

पीपल का पेड़ (गीतिका छंद)

पेड़ पीपल का खड़ा है, एक मेरे गांव में । शांति पाते लोग सारे , बैठ जिसके छांव में ।। शाख उन्नत माथ जिसका, पर्ण चंचल शान है । हर्ष दुख में साथ रहते, गांव का अभिमान है ।। पर्ण जिसके गीत गाते, नाचती है डालियां । कोपले धानीय जिसके, है बजाती तालियां ।। मंद शीतल वायु देते, दे रहे औषध कई । पूज्य दादा सम हमारे, सीख देते जो नई। नीर डाले मूल उनके, भक्त आस्थावान...

तांका (लघु कविता)

तांका लघु कविता 1.   तितली रानी सुवासित सुमन पुष्प दीवानी आलोकित चमन नाचती नचाती है । 2.  पुष्प की डाली रंग बिरंगे फूल हर्षित आली मदहोश हृदय कोमल पंखुडि़यां । 3.  जुगनू देख लहर लहरायें चमके तारे निज उर प्रकाश डगर बगराये । 4.   कैसी आशिक जल मरे पतंगा जीवन लक्ष्य मिलना प्रियतम एक तरफा प्यार । 5.   चिंतन करो चिंता...

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