‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

अपनी कलम की नोक से

अपनी कलम की नोक से,
क्षितिज फलक पर,
मैंने एक बिंदु उकेरा है ।

भरने है कई रंग,
अभी इस फलक पर,
कुंचे को तो अभी हाथ धरा है ।

डगमगाती पांव से,
अंधेरी डगर पर,
चलने का दंभ भरा है ।

निशा की तम से,
चलना है उस पथ पर,
जिस पथ पर नई सबेरा है ।

राही कोई और हो न सही,
अपने आशा और विश्वास पर,
अपनो का आशीष सीर माथे धरा है ।

एक गौरेया की पुकार

एक गौरैया एक मनुज से कहती है ये बोल,
हे बुद्विमान प्राणी हमारे जीवन का क्या है मोल ।

अपने हर प्रगति को अब तो जरा लो तोल,
सृष्टि के कण-कण में दिया है तूने विष घोल ।

क्या हम नही कर सकते कल कल्लोल,
क्यो हो रही  हमारी नित्य क्रिया कपोल ।

इस सृष्टि में क्या हम नही सकते हिल-डोल,
हे मनुज अब तो अपना मनुष्यता का पिटारा खोल ।

जो तेरा है वो मेरा भी है सारा सृष्टि-खगोल,
फिर क्यो बिगाड़ते रहे हो हमारा भूगोल ।

बरखा रानी


मानसून ढूंढे पथ अपना । कृषक बुने जीवन का सपना
पलक पावड़े बिछाय पथ पर । सभी निहारे अपलक नभ पर

बरखा रानी क्यो रूठी है । धरती अब तक तो सूखी है
आशाढ़ मास बितने को है । कृषक नैन अब रिसने को है

आने को है अब तो सावन । यह जो अब मत लगे डरावन
हे बरखा अब झलक दिखाओ । हमें और ना अधिक सताओ

उमड़ घुमड़ के अब तो आओ । धरती के तुम प्यास बुझाओ
छप्प छप्प खेलेंगे बच्चे । बहते जल पर उछल उछल के
-रमेशकुमार सिंह चौहान

महंगाई

बढ़े महंगाई, करे कमाई, जो जमाखोर, मनमानी ।
सरकारी ढर्रा, जाने जर्रा, है सांठ गांठ, अभिमानी ।।
अब कौन हमारे, लोग पुकारे, जो करे रक्षा, हम सब की ।
सीखें अर्थशास्त्र, भुल पाकशास्त्र, या करें भजन, अब रब की ।।
-रमेशकुमार सिंह  चौहान

पीपल का पेड़ (गीतिका छंद)

पेड़ पीपल का खड़ा है, एक मेरे गांव में ।
शांति पाते लोग सारे , बैठ जिसके छांव में ।।
शाख उन्नत माथ जिसका, पर्ण चंचल शान है ।
हर्ष दुख में साथ रहते, गांव का अभिमान है ।।

पर्ण जिसके गीत गाते, नाचती है डालियां ।
कोपले धानीय जिसके, है बजाती तालियां ।।
मंद शीतल वायु देते, दे रहे औषध कई ।
पूज्य दादा सम हमारे, सीख देते जो नई।

नीर डाले मूल उनके, भक्त आस्थावान जो ।
कामना वह पूर्ण करते, चक्रधारी बिष्णु हो ।।
सर्वव्यापी सा उगे जो, हो जहां मिट्टी नमी ।।
कृष्ण गीता में कहें हैं, पेड़ में पीपल हमी ।

तांका (लघु कविता)

तांका लघु कविता

1. 
 तितली रानी
सुवासित सुमन
पुष्प दीवानी
आलोकित चमन
नाचती नचाती है ।
2. 
पुष्प की डाली
रंग बिरंगे फूल
हर्षित आली
मदहोश हृदय
कोमल पंखुडि़यां ।
3. 
जुगनू देख
लहर लहरायें
चमके तारे
निज उर प्रकाश
डगर बगराये ।
4. 
 कैसी आशिक
जल मरे पतंगा
जीवन लक्ष्य
मिलना प्रियतम
एक तरफा प्यार ।
5. 
 चिंतन करो
चिंता चिता की राह
क्या समाधान
व्यस्त रखो जी तन
मस्त रखो जी मन ।।
6. 
 हर चुनाव
बदले तकदीर
नेताओं का ही
सोचती रह जाती
ये जनता बेचारी ।।
7.  
लूटते सभी
सरकारी संपदा
कम या ज्यादा
टैक्स व काम चोर
इल्जाम नेता सिर ।।
8. 
 उठा रहे है
नजायज फायदा
चल रही है
सरकारी योजना
अमीर गरीब हो ।।
9.
 जनता चोर
नेता है महाचोर
शर्म शर्माती
कदाचरण लगे
सदाचरण सम ।।
10.  
जल भीतर
अटखेली करते
मीनो का झुण्ड़
सड़ा एक मछली
दुषित सारे नीर।।
11.  
श्रम की पूजा
कर्मवीर बनाते
भाग्य की रेखा
स्वर्णिम लगते हैं
श्रम अंकित हस्त ।
12. 
 मई दिवस
मजदूर सम्मान
विश्व करते
श्रम का यशगान
श्रमवीर महान ।।
13. 
 दिन का स्वप्न
देख रहा है वह
नाचता मन
बंधे हाथ पैर है
कैसे मिलेगी खुशी ।।
14. 
 भोग किया है
कठोर वनवास
अवध राजा राम
श्रम की साधना से
बने वो भगवान ।।
15. 
 शिक्षा व्यपार
बिकती है उपाधि
किताबी कीड़े
कुचले जा रहे यहां
ढूंढते रोजगार ।
16.
  दोष किसका ?
रोज हो रहे रेप
स्वतंत्र कौन ?
नेता या सरकार
निरंकुश समाज ।
17. 
 कर्तव्य क्या है ?
राम जाने हमें क्या
हक की चाह
हमें क्या परवाह
अपना काम सधे ।

गजल


तेरे होने का मतलब चूडियाॅं समझती हैं
आंख में चमक क्यों हैं पुतलियाॅं समझती है

ये बदन का इठलाना और मन का मिचलाना
गूंथे हुये गजरों की बालियाॅं समझती है

हो तुम्ही तो मेरे श्रृंगार की वजह सारे
इस वजूदगी को हर इंद्रियाॅं  समझती है

श्वास तेरे मेरे जो एक हो गये उस पल
एहसास को तो ये झपकियाॅं समझती है

साथ देना तुम पूरे उम्र भर वफादारी से
बेवफाई को कातिल  सिसकियाॅं  समझती है
............................................
-रमेश कुमार चाैहान

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