‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

भूख (कुण्डलियां)

सही गलत का फैसला, कर ना पाये भूख ।
उदर भरे से काम है, चाहे मिले बदूख ।।
चाहे मिले बदूख, मौत तो भूख मिटाये ।
दुख दायी अति भूख, भूख तो सहा न जाये ।
रो रो कहे ‘रमेश‘ , दीनता की बात यही ।
सब दुख देना नाथ, न देना दुख भूख सही ।।

नाना प्रकार भूख के, होय सभी आक्रांत ।
कितने भूखे लोभ के, होय कभी ना शांत ।।
होय कभी ना शांत, होय जो तन का भूखा ।
उदर क्षुधा को लोग, मिटाये खा रूखा सूखा ।।
कैसे कहूं ‘रमेश‘, जगत को भूखा जाना ।
लोभ अौर व्यभिचार, हमारे लगते नाना ।।

नारी ही मां होत है (दोहा)


काट रहे उस साख को, जिसमें बैठे आप ।
कन्या को क्यो कोख में, कर देते हो साफ ।।

कन्या तो है सृष्टि की, इक अनुपम सौगात ।
माॅं बहना अरू पत्नि वह, मानव की अतिजात ।।

जीवन रथ के चक्र दो, इक नर दूजा नार ।
रख दोनो में संतुलन, जीवन धुरी सवार ।।

नारी ही मां होत है, जिससे चलती सृष्टि ।
करती रहती जो सदा, प्रेम सुधा की वृष्टि ।।

जीवन साथी चाहिये, हर नर को तो एक ।
यदि कन्या होगी नही, नर ना होंगे नेक ।।

अंतरमन में रखूं समेटे.

अंतरमन में रखूं समेटे, हम सब की जो है यारी ।
छुटपन की हम सखी सहेली, इक दूजे को प्यारी ।।

साथ-साथ हम पढ़े-लिखें हैं, खेले कूदे साझा ।
किये शरारत इक दूजे से, स्मरण हुई अब ताजा ।।
शिशु से किशोरी भई हम तो, गई समय मनुहारी ।
पढ़ाई स्कूल की पूर्ण हुई, बिछुड़न की अब बारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

‘रश्मि‘ बड़ी भोली-भाली तू, बात सभी सह जाती ।
ध्यान सभी की रखती आई, प्यार सदा जतलाती ।।
लड़ती-झगड़ती  शरारत में, मस्ती करती प्यारी ।
यदा-कदा जब वह रूठ जाती, हमसब  कहतीं स्वारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

‘मधु‘ तो गुस्सा नाक बिठाये, सुन शरारती बातें ।
चाहे वह रूठे हजार हम पर, भुक्कड़ बोल चिढ़ाते ।।
भूख छोड़ सब बातें सहती, सहन शक्ति अति भारी ।
शांत सहज दिखती वह हर पल, अति प्रिय सखी हमारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

‘प्रिया‘ बहुत सीधी-सादी तू, आॅंसू सबकी पोछे ।
भला सदा तू सबकी करती, बुरा कभी ना सोचे ।।
कभी नही तू रोती पल भर, चाहे दुख हो भारी ।
प्रिया तुझे सभी सखीयों में,जिज्ञासा अति प्यारी।। अंतरमन में रखूं समेटे....

‘जिज्ञासा‘ अति भावुक कन्या, सबका कहना माने ।
सबको करती स्नेह बराबर, निकट प्रिया को जाने ।।
छोटी-छोटी बातो पर वह, कहती हरदम स्वारी ।
हम सब की अति प्यारी तू तो, ‘वत्सला‘ तुझे प्यारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

वातसल्य भरी ‘वत्सला‘ में, बहुत खुशीया बांटे ।
मुस्कान चेहरों पर लाकर, गहन क्लेश को काटे ।।
अपने दुख पर परदा डालें, खुश रहती मतवारी ।
शालीनता भरे रग-रग में, बातें करती प्यारी । अंतरमन में रखूं समेटे....

‘दिव्या‘ रखती ध्यान सभी का, अच्छा खाना लाती ।
जब कोई दो बातें करतीं, सदा बीच में आती ।।
हरदम वह रश्मि संग करती, मस्ती प्यारी-प्यारी ।
साथ सभी के घुलमिल रहती, प्रिय सहेली हमारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

अभी-अभी तो साथ हमारे, आई नई सहेली ।
कैसे घुलमिल हमसे गई, लगती एक पहेली ।।
मस्ती में वह करती मस्ती, कभी शरारत न्यारी ।
पढ़ने-लिखने में चंगा जो, वह ‘धनेश्वरी‘ प्यारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

सुखमय चौदह बरस गुजारे, हम सभी संगवारी ।
स्वर्णिम पल आंखों में भरकर, गा रहे गीत प्यारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....

प्रीत के दोहे


कितनी विचित्र बात है, कैसे खोलू राज ।
होकर मेरी जिंदगी, वह मुझसे नाराज ।।

कुछ ना कुछ तो बात है, लगी मुझे वह खास ।
जीवन में पहली दफा, हुआ कुछ एहसास ।।

जीवन जो बेरंग था, रंगीन हुआ आज ।
चहक उठी जो कोयली, झनक उठे मन साज ।

दिल की दिल से बात है, समझ रहे दिलदार।
उनके मेरे प्रीत को, जाने ना संसार ।।

हाइकू


1.आत्मा की तृष्णा
प्रेम और दुलार
निश्छल प्यार ।

2-उलझ गया
चंचल मन मेरा
देख कर उसे।

3-मन की भोरी
वह रूपसी छोरी
मुख छुपाएं ।

4-नयन मूंद
मुझे ही निहारती
मन बसाय ।।

5-मानो ना मानो
अपना है विश्वास
तुम मेरे हो ।

6-.तुम मेरेे हो
मैं तो तुम्हारा ही हूॅं
सात जन्मों से

जीवन (दोहे)

ढ़ूंढ रहा मैं गांव को, जाकर अपने गांव ।
छोड़ गया था जिस तरह, दिखा नही वह ठांव ।।

ढल जाये जब शाम तो, हॅंसती आती रात ।
लाती है फिर चांदनी, एक मधुर सौगात ।।

एकाकीपन साथ ले, यादो की बारात ।
स्वपन सुंदरी बांह में, कट जाती है रात ।।

मृत्यु पूर्व मैं चाहता, अदा करूॅं सब कर्ज ।
रे जीवन तू भी बता, तेरा क्या है मर्ज ।।

पाप-पुण्य की जिंदगी, भटके जीव विहंग ।
सुख-दुख बोझिल पंख है, गहे कौन सा रंग ।।

छोड़ो जग में दुश्मनी, मिलेगा ना कुछ शेष ।
कर लो यारी आप अब, मिट जायेंगे क्लेश ।।

उलझन में मन है फसा, क्या होगा भगवान ।
अपनी गलती मानकर, बन गया पहलवान ।।

भरा हुआ गुण दोश है, हर मानव के देह ।
दोष दिखे कुछ ना उसे, गुण सेे रखते  नेह ।।

झूमत नाचत फागुन आये मत्तगयंद (मालती) सवैया


मौर लगे अमुवा सरसो पर,
मादकता महुॅआ छलकाये ।
पागल हो भवरा भटके जब
फूल सुवासित बागन छाये ।।
रंग बिरंग उड़े तितली तब
गंध सुगंध धरा बगराये ।
कोयल है कुहके जब बागन
झूमत नाचत फागुन आये ।।

लाल गुलाल पलाश खिले जब,
राज बसंत धरा पर छाये ।
धूप व शीत़ सुहावन हो तब 
मंद सुगंध बयार सुहाये ।
पाकर नूतन पल्लव डंठल
पेड़ जवा बन के ललचाये ।।
झूम उठी तितली जब फूलन
झूमत नाचत फागुन आये ।।
नाचत गावत फाग मनोहर
लेत बुलावत मोहन राधे ।।
हाथ गुलाल लिये मलते मुख
मान बुरा मत बोलय साधे
हाथ लिये पिचका सब बालक
झुण्ड बना कर खेलन आये ।
रंग गुलाल उड़े जब बादल
झूमत नाचत फागुन आये ।।
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मौलिक अप्रकाशित

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