‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

सावन (गीतिका छंद)

हर हर महादेव
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माह सावन है लुभावन, वास भोलेनाथ का ।
आरती पूजा करे हम, व्रत भी भोलेनाथ का ।।
लोग पार्थिव देव पूजे, नित्य नव नव रूप से ।
कामना सब पूर्ण करते, ले उबारे कूप से ।।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

सावन

ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
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-रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहे -रूपया ईश्वर है नही

काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।

रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।

मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।

निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।

धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।

बात नही यह दोहरी,  है यही गूढ ज्ञान ।
धन तो इतना चाहिये, जीवन का हो मान ।।
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-रमेशकुमार सिंह चौहान

मेरे नगर नवागढ़ में बाढ़ का एक दृश्य



गीतिका छंद
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मेघ बरसे आज ऐसे , मुक्त उन्मुक्त सा लगे ।
देख कर चहु ओर जल को, देखने सब जा जुटे ।।
नीर बहते तोड़ तट को, अब लगे पथ भी नदी ।
गांव घर तक आ गया जल, है मची कुछ खलबली ।।

हाट औ बाजार में भी, धार पानी की चली ।
पार करते कुछ युवक तो, मौज मस्ती में गली ।।
ढह गये कुछ घर यहां पर, जो बने थे तट नदी ।
जो नदी को रोक बैठे, सीख कुछ तो ले अभी ।
-रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहे


लाभ हानि के प्रश्न तज, माने गुरु की बात ।
गुरु गुरुता गंभीर है, उलझन झंझावात ।।

सीख सनातन धर्म का, मातु पिता भगवान ।
जग की चिंता छोड़ तू, कर उनका सम्मान ।।

पढ़े लिखे हो घोर तुम, जो अक्रांता सुझाय ।
निज माटी के सीख को, तुम तो दिये भुलाय ।।

अपनी सारी रीतियां, कुरीति होती आज ।
परम्परा की बात से, तुमको आती लाज  ।।

इतने ज्ञानी भये तुम, पूर्वज लागे मूर्ख ।
बनके जेंटल मेन अब, कहते सबको धूर्त ।।

माना तेरे ज्ञान से, सरल हुये सब काम ।
पर समाज परिवार तो, रहा नहीं अब धाम ।।

गुरु गुरुता समझे नहीं, पाल रहे गुरुवाद ।
ध्‍येय धर्म को धरे नहीं, गढ़े पंथ नवजात ।।

रहना तुम सचेत (रोला छंद)

मेरे अजीज दोस्त, अमर मै अकबर है तू ।
मै तो तेरे साथ, साथ तो हरपल है तू ।।
रहना तुम सचेत, लोग कुछ हमें न भाये ।
हिन्दू मुस्लिम राग, छेड़ हम को भरमाये ।।

मेरे घर के खीर, सिवइयां तेरे घर के ।
खाते हैं हम साथ, बैठकर तो जी भर के ।।
इस भोजन का स्वाद, लोग वो जान न पाये ।
बैर बीज जो रोप, पेड़ दुश्‍मनी का लगाये ।। रहना तुम सचेत ....

यह तो भारत देश्‍ा, लगे उपवन फूलों का ।
माली न बने चोर,कष्‍ट दे जो श्‍ाूलों का ।।
रखना हमको ध्यान, बांट वो हमें न पावे ।
वो तो अपने स्वार्थ, आज तो आग लगावे ।। रहना तुम सचेत ....

तू जो करे अजान, करूं मै ईश्‍वर पूजा ।
ईश्‍वर अल्ला नाम, नही हो सकते दूजा ।।
करते हम सम्मान, एक दूजे को भाये ।
हमें मिले जो श्‍ाांति, और जन जान न पाये ।। रहना तुम सचेत ....


हाड़ मांस का देह, रक्त में भी है लाली ।
हिन्दू मुस्लिम पूर्व, रहे हम मानव खुश्‍ाहाली ।।
दिये हमारे बाप, सीख जो उसे निभायें ।
अब कौमी के गीत, साथ मिलकर हम गायें । रहना तुम सचेत ....

सर्कस


खेल सर्कस का दिखाये, ले हथेली प्राण को ।
डोर पथ पर चल सके हैं, संतुलित कर ध्यान जो ।।
एक पहिये का तमाशा, जो दिखाता आज है ।
साधना साधे सफलतम, पूर्ण करता काज है ।।

काम जोखिम से भरा यह, पेट खातिर वह करे ।
अंर्तमन दुख को छुपा कर,हर्ष सबके मन भरे ।।
लोग सब ताली बजाते, देख उनके दांव को ।
आवरण देखे सभी तो, देख पाये ना घाव को ।।

ये जगत भी एक सर्कस, लोग करतबबाज हैं ।
जूझते जो उलझनो से, सृष्टि के सरताज हैं ।।
ध्येय पथ पर बढ़ चलो तुम, डोर जैसे नट चले।
दुख जगत का एक पहिया, तुम चलो इसके तले ।।
-रमेशकुमार सिंह चैहान

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