जब से दौलत हमारा निशाना हुआ
तब से ये जिंदगी कैद खाना हुआ ।
पैसे के नाते रिश्ते दिखे जब यहां
अश्क में इश्क का डूब जाना हुआ ।
दुख के ना सुख के साथी यहां कोई है
मात्र दौलत से ही जो यराना हुआ ।
स्वार्थ में कुछ भी कर सकते है आदमी
उनका अंदाज अब कातिलाना हुआ ।
गैरो का ऊॅचा कद देखा जब आदमी
छाती में सांप का लोट जाना हुआ ।
रेत सा तप रहा बर्फ सा जम रहा
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ।
जो खुदा सा इबादत करे पैसो का
या खुदा आपका मुस्कुराना हुआ ।
हाथ फैलाये आना औ जाना है
अब दो गज का ही तो आशियाना हुआ ।
तब से ये जिंदगी कैद खाना हुआ ।
पैसे के नाते रिश्ते दिखे जब यहां
अश्क में इश्क का डूब जाना हुआ ।
दुख के ना सुख के साथी यहां कोई है
मात्र दौलत से ही जो यराना हुआ ।
स्वार्थ में कुछ भी कर सकते है आदमी
उनका अंदाज अब कातिलाना हुआ ।
गैरो का ऊॅचा कद देखा जब आदमी
छाती में सांप का लोट जाना हुआ ।
रेत सा तप रहा बर्फ सा जम रहा
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ।
जो खुदा सा इबादत करे पैसो का
या खुदा आपका मुस्कुराना हुआ ।
हाथ फैलाये आना औ जाना है
अब दो गज का ही तो आशियाना हुआ ।