‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

गणेश स्तुति

गणेश वंदना
दोहा -
जो गणपति पूजन करे,  ले श्रद्धा विश्वास ।
सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।।

    चौपाई
हे गौरा  गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला । ।
सबसे पहले तेरा सुमरन  । करते हैं हम वंदन पूजन ।।1।।

हे प्रभु प्रतिभा  विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा अगम बताये ।।2।।

पिता गगन अरू माता धरती  । ज्ञान प्रकाश दिये प्रभु जगती
मातु-पिता तब मगन हुये अति । बना दिये तुम को गणाधिपति।3।

भक्त नाम जो तेरे  ले कर । चलते रहते मंजिल पथ पर
काज सभी  निर्विध्न सफल हो। पथ के बाधा सब असफल हो।4।

वक्रतुण्ड़ हे  देव गजानन । मूषक वाहन लगे सुहावन
जय जय लंबोदर जग पावन । रूप मनोहर तेरा मन भावन । 5।

मां की ममता तुझको भावे । तुझको मोदक भोग रिझावे 
बाल रूप बालक को भाये । मंगल मूर्ति सदा मन भाये ।6।

एकदन्त हे कृपा कीजिये । सद्विचार सद्बुद्धि दीजिये ।
हे गणनायक काम संवारे। जय जय गणपति भक्त पुकारे ।।7।।

हे मेरे आखर के देवता । स्वीकारे गणपति यह न्योता
मेरा वंदन प्रभु स्वीकारें । दुश्कर जग से मुझे उबारें ।।8।।

अपने पूर्वज अरू माटी का । अपने जंगल अरू घाटी का
गाथा गाऊँ सम्मान सहित । सदा रहूॅ मै अभिमान रहित।9।

सारद नारद यश को गाते । हे गणनायक तुझे  मनाते ।
रिद्धी सिद्धी के प्रभु दाता । सब दुख मेटो भाग्य विधाता ।10।

दोहा-
शरण गहे जो आपके, उनके मिटे क्लेष ।
 विध्न हरण प्रभु आप को, वंदन करे ‘रमेश‘ ।।

शिक्षक दिवस दोहावली

गुरू गुरूता गंभीर है, गुरू सा कौन महान ।
सद्गुरू के हर बात को, माने मंत्र समान ।

लगते अब गुरूपूर्णिमा, बिते दिनों की बात ।
मना रहे शिक्षक दिवस, फैशन किये जमात ।

शिक्षक से जब राष्ट्रपति, बन बैठे इस देश ।
तब से यह शिक्षक दिवस,  मना रहा है देश ।

कैसे यह शिक्षक दिवस, यह नेताओं का खेल ।
किस शिक्षक के नाम पर, शिक्षक दिवस सुमेल ।।

शिक्षक अब ना गुरू यहां, वह तो चाकर मात्र ।
उदर पूर्ति के फेर वह, पढ़ा रहा है छात्र ।

‘बाल देवो भव‘ है लिखा, विद्यालय के द्वार ।
शिक्षक नूतन नीति के, होने लगे शिकार ।

शिक्षक छात्र न डाटिये, छात्र डाटना पाप ।
सुविधाभोगी छात्र हैं, सुविधादाता आप ।।

जय हो जय हो भारत माता (छंदबद्व रचना)

दोहा ‘
भारत माता है भली, भली स्वर्ग से जान ।
नमन करते शिश झुका, देव मनुज भगवान् ।।

चैपाई -
लहर लहर झंडा लहराता । सूरज पहले शीश झुकाता ।
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव जग विख्याता ।।

उत्तर मुकुट हिमालय साजे । उच्च शिखर रक्षक बन छाजे ।।
गंगा यमुना निकली पावन । चार-धाम हैं पाप नशावन ।।

दक्षिण सागर चरण पखारे ।  गर्जन करते बन रखवारे
सेतुबंध शिवशंकर जापे     ।  सागर तट रामेश्वर थापे

कोणार्क सूर्य पूरब थाती     ।  जगन्नाथ की जग में ख्याती
सोमनाथ पश्चिम विख्याता ।  सागर तट द्वारिका सुहाता ।।

लाल किला दिल्ली का शोभा । ताज महल जग का मन लोभा
माँ-शिशु का है अपना नाता  । जय हो जय हो भारत माता

कर दो अर्पण

शहिदों का बलिदान पुकारता
क्यों रो रही है भारत माता ।

उठो वीर जवान बेटो,
भारत माता का क्लेश मेटो ।

क्यों सो रहे हो पैर पसारे
जब छलनी सीने है हमारे ।

तब कफन बांध आये हम समर,
आज तुम भी अब कस लो कमर ।

तब दुश्मन थे अंग्रेज अकेले
आज दुश्मनों के लगे है मेले ।

सीमा के अंदर भी सीमा के बाहर भी,
देष की अखण्ड़ता तोड़ना चाहते है सभी ।

कोई नक्सली बन नाक में दम कर रखा है,
कोई आतंकवादी बन आतंक मचा रखा है ।

चीन की दादागीरी पाक के नापाक इरादे,
कुंभकरणी निद्रा में है संसद के शहजादे ।

अब कहां वक्त है तुम्हारे सोने का,
नाजुक वक्त है इसे नही खोने का ।

ये जमी है तुम्हारी ये चमन हैं तुम्हारे,
तुमही हो माली तुमही हो रखवारे ।

श्वास प्रश्वास कर दो तुम समर्पण,
तन मन सब मां को कर दो अर्पण ।


..............‘‘रमेश‘‘............

वजूद

वजूद,
आपका वजूद
मेरे लिये है,
एक विश्वास ।
एक एहसास .....
खुशियों भरी ।

वजूद,
आपका वजूद
मेरे साथ रहता,
हर सुख में
हर दुख में
बन छाया घनेरी ।

वजूद,
आपका वजूद
मेरा प्यार ..


..............‘‘रमेश‘‘............


वर्षागीत



श्यामल घटा घनेरी छाई,
शीतल शीतल नीर है लाई ।
धरती प्यासी मन अलसाई,
तपते जग की अगन बुझाई ।।

खग-मृग पावन गुंजन करते,
नभगामी नभ में ही रमते ।
हरितमा धरती के आंचल भरते,
रंभाते कामधेनु चलते मचलते ।।

कृषक हल की फाल को भरते,
धान बीज को छटकते बुनते ।
खाद बिखेरते हसते हसते,
धानी चुनरिया रंगते रंगते ।।

सूखी नदी की गोद भरने लगी है,
कल कल ध्वनि बिखेरने लगी है ।
कुछ तटबंध टूट रहे है,
कहीं कहीं मातम फूट रहे हैं ।।

घोर घोर रानी कितना बरसे पानी,
ग्राम ग्राम बच्चे बोल रहे जुबानी ।
रंग बिरंगे तितली रानी तितली रानी,
उमड़ घुमड़ के बरसे पानी बरसे पानी ।।

-रमेश दिनांक 16 जून 2013

............‘रमेश‘...........

त्रिवेणी


1.आंखों से झर झर झरते है झरने,
मन चाहता है मर मर कर मरने

जब आता है उनका ख्याल मन में
2.    सावन की रिमझिम फुहारे व झुले
चल सखी मिल कर साथ झूले

बचपन के बिझुड़े आज फिर मिले
3.    तू चल रफ्ता रफ्ता मै दोड़ नही सकता
मन करता है ठहर जाने को टूट गया हू मै

महंगाई जो सुरसा बन गई है रे जीवन
4.    मन है उदास इस दुनिया को देखकर
स्वार्थी और मतलबी दोस्तो को देखकर

ये अलग बात है ये तोहमत मेरे ऊपर भी लगे है


...........‘‘रमेश‘‘................

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