‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

हिन्दी श्लोक

आठ वर्ण जहां आवे, अनुष्टुपहि छंद है ।
पंचम लघु  राखो जी, चारो चरण बंद में ।।

छठवाँ गुरु आवे है, चारों चरण बंद में ।
निश्चित लघु ही आवे, सम चरण सातवाँ ।।

अनुष्टुप इसे जानों, इसका नाम श्लोक भी ।
शास्त्रीय छंद ये होते, वेद पुराण ग्रंथ में ।।
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राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये ।
मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये ।।

मेरा मान लिये जो तो,  देश ही परिवार है ।
अपनेपन से होवे, सहज प्रेम देश से ।

सारा जीवन है बंधा, केवल अपनत्व से ।
अपनापन सीखाये, स्व पर बलिदान भी ।।

सहज परिभाषा है, सुबोध राष्ट्रधर्म का ।
हो स्वभाविक ही पैदा, अपनापन देश से ।

अपनेपन में यारों, अपनापन ही झरे ।
अपनापन ही प्यारा, प्यारा सब ही लगे ।।

अपना दोष औरों को, दिखाता कौन है भला ।
अपनी कमजोरी को,  रखते हैं छुपा कर ।।

अपने घर में यारों,  गैरों का कुछ काम क्या ।
आवाज शत्रु का जो हो, अपना कौन मानता ।।

होकर घर का भेदी, अपना बनता कहीं ।
राष्ट्रद्रोही वही बैरी, शत्रु से  मित्र भी  बड़ा ।।

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