‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

सबूत चाहिये

मांगे आज सबूत, करे जो शोर चुनावी ।
सोच रहा है देश, हुआ किसका बदनामी ।।
देख नियत पर खोट, नियत अपना ना देखे ।
निश्चित ये करतूत, शत्रु ने हाथ समेखे ।
प्रमाण-पत्र देश-प्रेम का , तुझे अन्य से ना चाहिये ।
किन्तु हमें तो तुमसे सही, इसका इक सबूत चाहिये ।।

कल की बातें छोड़, आज का ही दिखलाओ ।
देख रहा जो देश,  देश को ही बतलाओ ।।
कल की वह हर बात, दिखे जो तुम दिखलाये ।
सच है  या झूठ,  कौन  हमको बतलाये ।।
पीढी ठहरे हम आज के, देख रहे हैं हम आज को ।
लोकतंत्र का सजग प्रहरी, देखे प्रतिनिधि के काज को ।।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

नेता देते चोट

देश  विरोधी बात  पर,  करे कौन है  वोट ।
जिसे रिझाने देश को, नेता  देते  चोट  ।।
नेता  देते  चोट,  शत्रु  को  बाँहें डाले ।
व्यर्थ-व्यर्थ  के  प्रश्न, देश में खूब  उझाले ।।
रोये देख "रमेश ",  लोग  कुछ हैं  अवरोधी ।
देना  उसको चोट,  बचे ना देश विरोधी  ।।

- रमेश  चौहान

चिंतन के दोहे

मंगलमय हो दिन आपका, कृपा करे तौ ईष्ट ।
सकल मनोरथ पूर्ण हो, जो हो हृदय अभिष्ट ।।

जीवन दुश्कर मृत्यु से, फिर भी जीवन श्रेष्ठ ।
अटल मृत्यु को मान कर, जीना हमें यथेष्ठ ।।

एक ध्येय पथ एक हो, एक राष्ट्र निर्माण ।
एक धर्म अरु कर्म के, धारें तीर कमान ।।

कर्म आज का होत है, कल का तेरा भाग्य ।
निश्चित होता कर्म फल, गढ़ ले निज सौभाग्य ।।

दिवस निशा बिन होत ना, निशा दिवस का मूल ।
नित्य नियत निज कर्म कर, किये बिना कुछ भूल ।

साथ समय चलता नहीं, हमको चलना साथ ।
साथ समय के जो चले, उनके ऊँचे माथ ।।

अग्नी है ज्यों काष्ठ में, जीवन में है काल ।
ध्येय मुक्ति का पथ जगत, करना नहीं मलाल ।।

राष्ट्रधर्म ही धर्म है, मेरा अपना धर्म ।
मातृभूमि रक्षा हेतु, मरना मेरा कर्म ।।

आँख खोल कर देखिये, सपने कई हजार ।
लक्ष्य मान कर दौड़िये, करने को साकार ।

न्याय-न्याय लगता नहीं, होय न्याय में देर ।
वर्षों तक कुचले दबे, बनकर केवल ढेर ।।

शिक्षा का उद्देश्य क्या, पढ़े-लिखों की भीड़ ।
दाना मुँह न डाल सके, बुन न सके वह नीड़ ।।

नाव डूब जाता यथा, नाव चढ़े जब नीर ।
गर्व चढ़े जब देह पर, डूब जात मतिधीर ।।


-रमेशकुमार सिंह चौहान

चुनावी होली

चुनावी होली
(सरसी छंद)

जोगीरा सरा ररर रा
वाह खिलाड़ी वाह.

खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग ।
ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।।
जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा

जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर ।
सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।।
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार ।
अंधभक्त का ताना देते, उनके अजब विचार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

बरसाती मेढक दिखते जैसे, दिखती है वह नार ।
आज चुनावी गोता खाने, चले गंग मजधार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

मंदिर मस्जिद माथा टेके, दिखे छद्म निरपेक्ष।
दादा को बिसरे बैठे,  नाना के सापेक्ष ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

दूध पड़े जो मक्खी जैसे, फेक रखे खुद बाप ।
साथ बुआ के निकल पड़े हैं, करने सत्ता जाप ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा


इक में माँ इक में मौसी, दिखती ममता प्यार ।
कोई कुत्ता यहाँ न भौके, कहती वह ललकार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

मफलर वाले बाबा अब तो, दिखा रहे हैं प्यार ।
जिससे लड़ कर सत्ता पाये, अब उस पर बेजार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

पाक राग में राग मिलाये, खड़ा किये जो प्रश्न ।
एक खाट पर मिलकर बैठे, मना रहे हैं जश्न ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा


नाम चायवाला था जिनका, है अब चौकीदार ।
उनके सर निज धनुष चढ़ाये, उस पर करने वार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

-रमेशकुमार सिंह चौहान

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