‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

कल और आज

//कल और आज//

कल जब मैं स्कूल में पढ़ता था,
मेरे साथ पढ़ती थी केवल एक लड़की
आज मैं स्कूल में पढ़ाते हुये पाता हूँ
कक्षा में
दस छात्र और बीस छात्रा ।

कल जब मैं शिक्षक का दायित्व सम्हाला ही था
स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने हेतु
एक छात्रा को सहमत कराने में
पसीना आ जाता था
और आज एक छात्र को तैयार करने में
पसीना क्या खून जलाना पड़ रहा है ।

कल जब मेरा विवाह हुआ
मेरी  इच्छा धरी रह गई
बारहवी पास लड़की से
विवाह करने की
आज मेरी लड़की एम.ए.पास है
जिनका विवाह करना पड़ा
एक बारहवी पास लड़के से ।

कल जब मैं अपने बचपने में
गाँव में नाच देखने जाया करता था
मुझे अच्छे से याद है
सौ पुरषों के मध्य
बीस महिला ही रहती थीं
आज मैं यदा-कदा नाच देखने जाता हूँ तो
महिलाओं के भीड़ में
अपने लिये स्थान भी नही बना पाता ।

कल मेरे बाल्यकाल में
मेरे घर के हर  सुख-दुख के काम में
मेरे परिवार की महिलायें मिलकर
एकसाथ भोजन पकातीं
और विवाह आदि में
गढ़वा बाजा के पुरूष नर्तक
महिला वेश धारण कर नाचते
आज मैं पुरूष रसोइयो से
भोजन बनवाया
मेरी घर की महिलायें
धूमाल के साथ नाच रही हैं ।

आज सुबह-सुबह कुम्हारी में
जब मैं मार्निंगवाक पर गया
तो मैंने रास्ते में
चार पुरूष और चौदह महिला को
सैर करते हुये पाया
सैर करते-करते
कल और आज का यह दृश्य
मेरे आँखों के सामने उमड़-घुमड़ कर आता रहा ।।

-रमेश चौहान

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