‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

कुछ दोहे


एक पहेली है जगत, जीवन भर तू बूझ ।
सोच सकारात्मक लिये, तुम्हे दिखाना सूझ ।।


अपनी भाषा में लिखो, अपने मन की बात ।
हिंदी से ही हिंद है, जिसमें प्रेम समात ।।


गद्दारों की गद्दारी से , बैरी है मुस्काए ।
गद्दारों को मार गिराओ , बैरी खुद मर जाए ।।

राधा-माधव प्रेम का, प्रतिक हमारे देश ।
फिर भी दिखते आज क्यों, विकृत प्रेम का वेश ।।

नहीं चाहिये प्रेम का, मुझको दिवस विशेष ।
मेरे जीवन में रहे, प्रतिपल प्रेम अशेष ।।

रूखा-रूखा जग लगे, होवे जब मन खिन्न ।
जिसको अपना कह थके, लगने लगते भिन्न ।।

माँ मौसी जो कर रहे, राजनीति के नाम ।
देख रही जनता अभी, उनके सारे काम ।

नियत रीत है काल का, जिनका अपना ढंग ।
समदर्शी यह काल है, हर पल सबके संग ।।

जिनके मन संतोष है, सुखी वही इंसान ।
तृप्त, तृप्त संतोष से, तृप्त नाम भगवान ।।

फाग राग फागुन सुनत, गह कर लिये गुलाल ।
थिरकत बसंत थाप पर, दोनों लालम लाल ।

श्रद्धा अरु विश्वास में, होती इतनी शक्ति ।
पत्थर को भगवान कर, देती हमको भक्ति ।।

खफा कहूं या व्यस्त उसे, या रह जाऊँ मौन ।
मित्र एक मेरा अभी, उठा रहा ना फोन ।

जात-पात को छोड़ दो, कहते हैं जो लोग ।
जात-पात के नाम पर, चखे राजसी भोग ।।

जात-पात जाने नही, विद्या बुद्धि विवेक ।
यथा विलायक नीर है, रंग-रंग में एक ।

धर्म निरपेक्ष देश में, दिखते धर्म हजार ।
जाति जाति के धर्म हैं, संविधान बेजार ।।

संविधान इतना कठिन, लाखों लाख वकील ।
सरल सहज इतना सहज, देते सभी दलील ।।

धर्म, डगर कर्तव्य का, जीव प्रकृति प्रति प्रीत ।
सद्गुण निज अंतस भरे, यही धर्म की रीत ।

घट-घट रज-कण जो रचे, रमे वही हर देह ।
जीव-जीव निर्जीव पर, करते रहते स्नेह ।


आँख खोल कर देखिये, सपने कई हजार ।
लक्ष्य मान कर दौड़िये, करने को साकार ।

मन का ही भटकाव है, दिखे स्वप्न जो रात ।
मन का हर संकल्प ही, खुले नयन की बात ।

कामयाब है आज वह, पैसा जिनके पास ।
सही दिशा अरु सोच ही, इनके साधन खास ।।

पहले करके देखिए, किए बिना क्यों प्रश्न ।
हार हार के अंत में, छुपा जीत का जश्न ।।

पहले अपने आप पर, करें पूर्ण विश्वास ।
फिर निश्चित है देखना, मंजिल तेरे पास ।।

सहनशक्ति कमजोर जब, लगते दर्द धनांक ।
गल जाते वे तार हैं, जिसके कम गलनांक ।।

लाख बुराई हो सही, पर कुछ तो है नेक ।
लाख बुराई छोड़कर, इक अच्छाई देख ।।

झूठ झूठ बाजार में, झूठे झूठे लोग ।
पड़े रहे विश्वास में, भोग रहे हैं भोग ।।

वायु पवन समीर हवा, प्राणवायु का नाम ।
ईश्वर अल्ला या खुदा, परमशक्ति से काम ।।

ढोल सुहाने दूर के, रहि-रहि मन भरमाय ।
हाथ जले जब होम से, तभी समझ में आय ।

स्वप्नों की रेखा बड़ी, स्रोत आय की छोट ।
दोनों रेखा एक हो, लगे न मन को चोट ।।

लाख जतन हमने किए, आए ना वह हाथ ।
चलने जो तैयार थे, छोड़ दिए अब साथ ।।


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