‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

उदित हुई संस्कार नई है

उदित हुई संस्कार नई है, आई नूतन बेला ।
मंदिरों पर है वीरानी, मदिरालय पर मेला ।।

सुख दुख का सच्चा साथी, अब मदिरा को माने ।
ईश्वर को पत्थर की मूरत,  नए लोग हैं जाने ।।

दुग्धपान ना रुचते अब तो, बहुधा मांसाहारी ।
युवा वृद्ध वा अबोध बच्चे, दिखते हैं व्यभिचारी ।।

स्वार्थ की डोर गगनचुंबी है, धरती को जो बांटे ।
अपनों में भी लोग यहां अब, मेरा कहकर छांटे ।।

लोक मर्यादा बंधन लगते, अब नवीन पीढ़ी को ।
सीधे-सीधे मंजिल चढ़ते, तज घर की सीढ़ी को ।।

घर परिवार टूटता अब तो, अधिकार जताने से ।
नारी नर में द्वेष बढ़ा है, जागृति दिखलाने से ।।

कल की बातें हुई पुरानी, नई सोच आने से ।
संस्कार विहिन लोगों के अब, शिक्षित कहलाने से ।

शिक्षा नहि संस्कार चाहिए, समता दिखलाने को ।
भौतिकता को तज दो बंदे, आत्म शांति पाने को ।।

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