‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

गांव बने तब एक निराला


सौंधी सौंधी मिट्टी महके
चीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके ।
बाँह भरे हैं जब धरा गगन
बरगद पीपल जब हुये मगन
गांव बने तब एक निराला
देख जिसे ईश्वर भी बहके ।
ऊँची कोठी एक न दिखते
पगडंडी पर कोल न लिखते
है अमराई ताल तलैया,
गोता खातीं जिसमें अहके ।
शोर शराबा जहां नही है
बतरावनि ही एक सही है
चाचा-चाची भइया-भाभी
केवल नातेदारी गमके ।
सुन-सुन कर यह गाथा
झूका रहे नवाचर माथा
चाहे  कहे हमें देहाती
पर देख हमें वो तो जहके ।
-रमेश चौहान

Blog Archive

Popular Posts

Categories