गाय को न जीव मात्र, मानिये महानुभाव
हमने सदैव इसे, माॅं समान माना है ।
धरती की कामधेनु, धरती का कल्पवृक्ष
भव तरण तारणी, गौ माॅं को ही जाना है ।
गौ माता के रोम-रोम, कोटि कोटि है देवता
ब्रम्हा बिष्णु शिव सभी, गौ पर विराजते।
धर्म सनातन कहे, गौ गंगा अरू गीता को
जो करे मन अर्पण, मुक्ति पथ साजते ।।
विज्ञान की कसौटी से, परख कर जाना है
गौ मूत्र अरू गोबर , औषधी का खान है ।
दूध दही घी मक्खन, जिसने है पान किया
निश्चित ही मान लिया, यही सुधा पान है ।।
धरती की उर्वरा को, गोबर खाद बढ़ाये
जिससे उपजे अन्न, स्वस्थ देह साजता ।
युग युग से मानव, गोबर पानी लिप कर
कुटिया या महल को, पावन ही मानता ।।
रोग जितने देह के, असाध्य जो कहलाये
साध्य वह बन जाते, गौ मूत्र के पान से ।
धरती वायुमंडल, जो ध्रुम कुलषित है
शुद्ध पावन तो होंगे, होम घृत दान से ।।
मानिये महानुभाव, बात को परख कर
सृष्टि संतुलन में तो, अनमोल धेनु है ।
जग के सकल जीव, यदि पुष्प की कली हो
गौ माता इस पुष्प की, एक पुहुरेनु है ।।
अपने को गौ सेवक, जो जन है मानते
पहले पहल आप, गौचर को छोड़िये ।
गौठान नदी तट के, बेजाकब्जा छोड़
अपना निज संबंध, गौ माता से जोड़िये ।।
हमने सदैव इसे, माॅं समान माना है ।
धरती की कामधेनु, धरती का कल्पवृक्ष
भव तरण तारणी, गौ माॅं को ही जाना है ।
गौ माता के रोम-रोम, कोटि कोटि है देवता
ब्रम्हा बिष्णु शिव सभी, गौ पर विराजते।
धर्म सनातन कहे, गौ गंगा अरू गीता को
जो करे मन अर्पण, मुक्ति पथ साजते ।।
विज्ञान की कसौटी से, परख कर जाना है
गौ मूत्र अरू गोबर , औषधी का खान है ।
दूध दही घी मक्खन, जिसने है पान किया
निश्चित ही मान लिया, यही सुधा पान है ।।
धरती की उर्वरा को, गोबर खाद बढ़ाये
जिससे उपजे अन्न, स्वस्थ देह साजता ।
युग युग से मानव, गोबर पानी लिप कर
कुटिया या महल को, पावन ही मानता ।।
रोग जितने देह के, असाध्य जो कहलाये
साध्य वह बन जाते, गौ मूत्र के पान से ।
धरती वायुमंडल, जो ध्रुम कुलषित है
शुद्ध पावन तो होंगे, होम घृत दान से ।।
मानिये महानुभाव, बात को परख कर
सृष्टि संतुलन में तो, अनमोल धेनु है ।
जग के सकल जीव, यदि पुष्प की कली हो
गौ माता इस पुष्प की, एक पुहुरेनु है ।।
अपने को गौ सेवक, जो जन है मानते
पहले पहल आप, गौचर को छोड़िये ।
गौठान नदी तट के, बेजाकब्जा छोड़
अपना निज संबंध, गौ माता से जोड़िये ।।
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