‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

जलूं क्यों आखिर घिर कर

घिर कर चारों ओर से, ढूंढ रहा हूॅ राह ।
शीश छुपाने की जगह, पाने की है चाह ।।
पाने की है चाह, कहीं पर एक ठिकाना ।
लगी आग चहुं ओर, मौत को है अब आना ।।
मनुज नही यह देह, कहे वह छाती चिर कर ।
मैं जंगल का पूत, जलूं क्यों आखिर घिर कर ।।

-रमेश चौहान

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