सूर्य ताप से ये धरा, झुलस रही है तप्त ।
गर्म तवे पर तल रहे, जीव जीव अभिसप्त ।।
जीव जीव अभिसप्त, कर्म गति भोगे अपना ।
सृष्टि चक्र को छेड़, देख मनमानी सपना ।
हाथ जोड़ चौहान, निवेदन करे आप से ।
रखें संतुलित सृष्टि, बचे इस सूर्य ताप से ।।
- रमेश चौहान
गर्म तवे पर तल रहे, जीव जीव अभिसप्त ।।
जीव जीव अभिसप्त, कर्म गति भोगे अपना ।
सृष्टि चक्र को छेड़, देख मनमानी सपना ।
हाथ जोड़ चौहान, निवेदन करे आप से ।
रखें संतुलित सृष्टि, बचे इस सूर्य ताप से ।।
- रमेश चौहान
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें