‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

करो प्रीत अपनो से बंदे

‘रमेश‘ दोनों हाथ जोड़ कर, श्री गणपति प्रथम मनावे ।
ज्ञानी जन को वंदन करके, रम्य छंद कुकुभ सुनावे ।।
सोलह चैदह पर यति जिसमें, छंद कुकुभ है कहलाते ।
विषम चरण बाध्य नही विशेष, पदांत गुरू-गुरू ही आते ।।

कुलशित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, बरबस ही नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से हाथ मिलाये ।
भौतिकता के फेर फसे तुम, अपने घर आग लगाये ।।

मैकाले के जाल फसे हो, समझ नही तुझको आयेे ।
अपनी संस्कृति अपनी माटी, तुझे फुटी आंख न भाये ।।
दुग्ध पान को श्रेष्ठ जान कर, मदिरा को क्यो अपनाये ।
पियुष बूॅद गहे नही तुम तो, गरल पान को ललचाये ।।

पैर धरा पर धरे नही तुम, उड़े गगन पंख पसारे ।
कभी नही सींचे जड़ पर जल, नीर साख पर तुम डारे ।
नीड़ नोच कर तुम तो अपने, दूजे का सदन सवारे ।
करो प्रीत अपनो से बंदे, कह ज्ञानी पंडित हारे ।।

Blog Archive

Popular Posts

Categories