‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

दोहावली



अपने समाज देश के, करो व्याधि पहचान ।
रोग वाहक आप सभी, चिकित्सक भी महान ।।

रिश्‍वत देना कोय ना, चाहे काम ना होय ।
बने घाव ये समाज के, इलाज करना जोय ।।

भ्रष्‍टाचार बने यहां, कलंक अपने माथ ।
कलंक धोना आपको, देना मत तुम साथ ।।

रूकता ना बलत्कार क्यों, कठोर विधान होय ।
च्रित्र भय से होय ना, गढ़े इसे सब कोय ।।

जन्म भये शिशु गर्भ से, कच्ची मिट्टी जान ।
बन जाओ कुम्हार तुम, कुंभ गढ़ो तब षान ।।

लिखना पढना क्यो करे, समझो तुम सब बात ।
देश धर्म का मान हो, गांव परिवार साथ ।।

पुत्र सदा लाठी बने, कहते हैं मां बाप ।
उनकी इच्छा पूर्ण कर, जो हो उनके आप ।।

छलके थकान अंग पर, कंठ रहा है सूख ।
अधर नीर ले सांस भर, मिटा रही वह भूख ।।

श्रम देवी श्रृंगार कर, धारे आयुध हाथ ।
सृर्जित करने राह नव, पत्थर ढोती माथ ।।

नारी अबला होय ना, घर बाहर है नाम ।
चूल्हा चैका साथ में, करती वह सब काम ।।

संघर्षो से जूझना, भरत वंश पहचान ।
संघर्षो से जूझते, राम बने भगवान ।।

श्रम तो जीवन साध्य है, साधे सकल सुजान ।
श्रमफल मीठा होत है, चख लो आप महान ।।

महिला से जो होय ना, कठिन काज ना कोय ।
करती नारी सब काज अब, नर सम नारी सोय ।।

------------------------------------------
-रमेशकुमार सिंह चौहान

Blog Archive

Popular Posts

Categories