‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

हे भगवान मुझे टी.वी. बना दे


  
       
मंदिर में मत्था टेकने बहुत लोग जाते हैं,
और अपने मन की मुराद अपने मन में दुहराते हैं ।

एक बार एक बच्चा अपने मां बाप के साथ मंदिर आया,
सबको भगवान के सामने घुटने टेक बुदबुदाते हुये पाया ।
बच्चा ये देख कुछ समझ नही पाया उसने मां से फरमाया,
मन में जो हो इच्छा यहां कह दो भगवान सब देते है मां ने बताया ।

बच्चे के कोमल चित में एक कल्पना जागा,
उसने भगवान से खुद को टीवी बनाने का वरदान मांगा ।

पास खडे़ पंडि़तजीने बच्चे बात सुनकर उनसे पूछा,
बोल बेटा तुम्हे टीवी बनने को क्यो सुझा ।

बच्चे ने कहा जब मैं टीवी बनजाऊंगा,
अपने पूरे परिवार का प्यार मैं पाऊंगा ।

बिना बाधा के सब मुझको प्यार से निहारेंगें,
मम्मी पापा एक साथ दोनों मुझे देखने पधारेंगे ।

मम्मी की चहेती सिरीयल बन मैं इतराऊंगा,
समाचार क्रिकेट बन मैं पापा के आंखों का तार हो जाऊंगा ।

जब कभी मैं अस्वस्थ हो चला तो,
मम्मी पापा काम पर नहीं जायगें, दौड़कर मुझे ठीक करायेंगे ।

मेरी दीदी जो मुझसे रोज लडती रहती,
अब मेरे पास बैठ मुस्कुराएगी, अब नही सतायेगी ।
बच्चे की व्यथा कथा सुनकर पंडि़तजी बोला शालीन,
बेटा तू तो सुंदर मनुष्य है फिर क्यों बनना चाहते हो मशीन ।

अभी भी तो मैं मशीन हूॅ जो रिमोट से चलाया जाता हूॅ,
घर से स्कूल और स्कूल से घर बस से पहुंचाया जाता हूॅ ।

स्कूल में पढाई, घर में होमवर्क फिर टयूशन चला जामा हूॅ,
दिन भरे बस्ते का बोझ ढ़ो शाम को पापा का ड़ांट खाता हूॅ ।

न खेलने की आजादी न घुमने की शौक पूरा कर पाता हूॅ,
पढ़ाई पढ़ाई बस पढ़ाई के बोझ से ही मै मरे जाता हूॅ ।

मम्मी की आफिस और पापा का काम इनका भी साथ कहां पाता हूॅ,
मनुष्य होकर भी मशीन होने से अच्छा टीवी बनना चाहता हूॅ ।

सुन कर बच्चे की बातें पंडि़त जी ने राधे राधे कहके मन को शांत किया,
पास खड़ी मां रोते रोते बच्चे गोद में ले भगवान को प्रणाम किया ।
.................रमेश.....................

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