‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है



हे गोवर्धन गिरधरी बांके बिहारी,
हे नारायण नर हेतु नर तन धारी ।
दया करो दया करो हे दया निधान,
आज फिर जगा सत्ता का इंद्राभिमान ।।

स्वार्थ परक राजनिति की आंधी,
आतंकवाद, नक्सवाद की व्याधी ।
अंधड़ सम भष्ट्राचार उगाही चंदा
भाई भतीजेबाद का गोरख धंधा ।।

आकंठ डूबे हुये है जनता और नेता
जो ना हुआ द्वापर सतयुग और त्रेता ।
नारी संग रोज हो रहे बलत्कार,
मासूमो पर असहनीय अत्याचार ।।

जब अधर्म अनाचार हंसता है,
तो दीन हीन ही फंसता है ।
न जीता है  न मरता है,
तडप तडप कर यही कहता है ।

क्या अब भी पुभु धर्म बचते दिखता है ।
क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है ।।

Blog Archive

Popular Posts

Categories