हे गोवर्धन गिरधरी बांके बिहारी,
हे नारायण नर हेतु नर तन धारी ।
दया करो दया करो हे दया निधान,
आज फिर जगा सत्ता का इंद्राभिमान ।।
स्वार्थ परक राजनिति की आंधी,
आतंकवाद, नक्सवाद की व्याधी ।
अंधड़ सम भष्ट्राचार उगाही चंदा
भाई भतीजेबाद का गोरख धंधा ।।
आकंठ डूबे हुये है जनता और नेता
जो ना हुआ द्वापर सतयुग और त्रेता ।
नारी संग रोज हो रहे बलत्कार,
मासूमो पर असहनीय अत्याचार ।।
जब अधर्म अनाचार हंसता है,
तो दीन हीन ही फंसता है ।
न जीता है न मरता है,
तडप तडप कर यही कहता है ।
क्या अब भी पुभु धर्म बचते दिखता है ।
क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है ।।
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